Sunday, May 31, 2009

सिगरेट पीने से दिमाग पर गहरा असर

विश्व तंबाकू निषेध दिवस 31 मई

सिगरेट पीने से
दिमाग पर
गहरा असर

सिगरेट दिमाग के रसायनों पर असर डाल बड़े बदलाव के लिए ज़िम्मेदार होती है
एक अध्ययन में पाया गया है कि सिगरेट पीने से मस्तिष्क में उसी तरह के परिवर्तन होते हैं जैसा कि नशीली दवाएँ लेने पर.अमरीकी शोधकर्ताओं ने कुछ मृत लोगों के दिमागों का तुलनात्मक अध्ययन किया. इसमें तीन तरह के लोगों के दिमाग़ को लिया गया था.इसमें धूम्रपान करने वाले, न करने वाले और पहले कभी धूम्रपान के आदी रह चुके लोगों के मस्तिष्क शामिल थे. 'जनरल ऑफ़ न्यूरोसाइंस' में छपी इनके अध्ययन में कहा गया है कि धूम्रपान करने से मस्तिष्क में लंबे समय तक बने रहने वाले बदलाव होते हैं.एक ब्रिटिश विशेषज्ञ ने कहा कि इन परिवर्तनों को देखकर यह भी पता लगाया जा सकता है कि धूम्रपान करने वाले के लिए इसे रोकना कठिन क्यों था और उसने फिर धूम्रपान करना क्यों शुरू किया.
निकोटिन
'नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन ड्रग एब्यूज़' के शोधकर्ताओं ने मानव मस्तिष्क के उन ऊतकों के नमूनों को देखा जो नशे की प्रवृत्ति रोकने में प्रभावी भूमिका निभाते हैं.ऐसे आठ लोगों के नमूने लिए गए थे जिन्होंने मरते दम तक नशा किया. आठ ऐसे लोगों के नमूने लिए गए थे जिन्होंने 25 साल तक नशा किया था और आठ लोगों के नमूने ऐसे थे जिन्होंने कभी भी नशा नहीं किया था.इनमें से किसी की मौत नशा करने की वजह से नहीं हुई थी.शोधकर्ताओं का कहना था कि धूम्रपान करने वालों और न करने वालों के मस्तिष्क में भी निकोटिन के प्रभाव से बड़ा बदलाव हो सकता है.लंदन के किंग्स कॉलेज़ में 'नेशनल एडिक्शन्स सेंटर' के डॉ जॉन स्टैप्लेटन का कहना है,"यदि लंबे समय तक निकोटिन दिन में कई बार शरीर के अंदर जाए तो यह बहुत ही आश्चर्य की बात होगी कि दिमाग में बड़े परिवर्तन न दिखाई पड़ें."उन्होंने कहा,"लेकिन अभी यह पता करना बाक़ी है कि क्या ये परिवर्तन किसी भी स्तर पर धूम्रपान की आदत पड़ने या एक बार आदत छूटने के बाद भी फ़िर से धूम्रपान के लिए ज़िम्मेदार हैं."
शोधकर्ताओं के अनुसार ये बदलाव धूम्रपान छोड़ने के लंबे समय के बाद भी दिखाई पड़ सकते हैं.
'धूम्रपान पर रोक से दिल को ख़तरा कम'
धूम्रपान से कई तरह की बीमारियाँ होती हैं
एक शोध से पता चला है कि इटली में सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध लगने के बाद से दिल का दौरा पड़ने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है.इटली के पाइडमॉंट इलाक़े में ये अध्ययन किया गया है. विशलेषण के मुताबिक प्रतिबंध लगने के बाद पहले पाँच महीनों में, दिल का दौरा पड़ने के चलते अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में पिछले साल के मुकाबले 11 प्रतिशत की कमी आई है.
अध्ययन करने वाली टीम ने यूरोप की पत्रिका हार्ट जर्नल में लिखा है कि ऐसा 'पैसिव स्मोकिंग' में कमी आने से हुआ है. पैसिव स्मोकिंग से प्रभावित होने वाले वे लोग होते हैं जो धूम्रपान नहीं करते पर आस-पास हो रहे धूम्रपान के चलते धुँए का शिकार हो जाते हैं.इटली की सरकार ने 2005 में ऐसी सभी सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान पर रोक लगा दी है जो अंदर हैं जैसे कैफ़े, बार और रेस्तरां.
आयरलैंड, नॉर्वे, दक्षिण अफ़्रीका और स्वीडन में भी ऐसा ही प्रतिबंध लागू है.
'ख़तरा कम'
साँस की बीमारी और फ़ेफ़डे के कैंसर समेत कई ऐसी बीमारियाँ हैं जिनका संबंध धूम्रपान से है.
इटली में टयूरिन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पाइटमॉंट इलाक़े में दिल का दौरा पड़ने के बाद भर्ती होने वाली मरीज़ों की संख्या का अध्ययन किया है.साथ ही उन लोगों का भी जिनकी भर्ती होने के बाद मौत हो गई.ये अध्ययन धूम्रपान पर प्रतिबंध लगने के बाद के समय-फऱवरी 2005 से जून 2005 में किया गया. शोध 60 वर्ष से कम उम्र वाले लोगों पर हुआ.शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रतिबंध लगने का बाद दिल के दौरे के 832 मामले सामने आए जबकि पिछले वर्ष इस दौरान 922 मामले हुए थे. यानी 11 फ़ीसदी की गिरावट.उधर ब्रिटिश हार्ट फ़ाउंडेशन के रुआरी ओ कॉनर ने कहा कि इस अध्ययन पर हम सतर्कता से प्रतिक्रिया दे रहे हैं लेकिन ये ज़रूर लग रहा है कि धूम्रपान से जुड़ी ऐसी नीतियाँ का दिल के दौरे के मामलों पर असर हो सकता है.लेकिन हॉर्ट जनरल पत्रिका में छपे एक अन्य लेख में धूम्रपान पर लगी रोक को लेकर आलोचना भी की गई है.
अप्रत्यक्ष धूम्रपान से आँख को ख़तरा
ब्रिटेन में उम्र से प्रभावित होने वाली आँख की बीमारियों के क़रीब पाँच लाख मरीज़ हैं ब्रिटेन में एक शोध में कहा गया है कि धूम्रपान करने वालों के धुएँ का शिकार होने वाले लोग भी अंधेपन की एक सामान्य कारण का शिकार हो सकते हैं यानी अप्रत्यक्ष धूम्रपान नज़र के लिए बेहद ख़तरनाक साबित हो सकता है.कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक दल ने उम्र बढ़ने के साथ होने वाली नज़र समस्या का संबंध धूम्रपान के असर के साथ जोड़कर देखने के लिए अध्ययन किया जो नेत्र विज्ञान की ब्रितानी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.शोध से नतीजा निकला है कि धूम्रपान करने वाले के साथ पाँच साल तक रहने से अंधेपन का ख़तरा बढ़ जाता है और लगातार धूम्रपान करने से यह ख़तरा तीन गुना बढ़ जाता है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अध्ययन इस बात को और पक्का करता है कि सार्वजनिक स्थलों और दफ़्तरों आदि में धूम्रपान पर पूर्ण रूप से रोक लगाई जाए.पहले ही शोधों से पता चलता है कि धूम्रपान नज़र की समस्याओं का ख़तरा बढ़ाता है लेकिन इस ताज़ा अध्ययन ने यह भी साफ़तौर पर साबित कर दिया है कि अप्रत्यक्ष धूम्रपान भी उतना ही ख़तरा पैदा कर सकता है.उम्र के साथ होने वाली नज़र की समस्या आमतौर पर 50 साल की उम्र पार करने के बाद होती है. धूम्रपान रैटिना के केंद्रीय हिस्से पर असर डालता है जो पढ़ने, कार चलाने वगैरा में बहुत ज़रूरी होती है.हालाँकि ऐसी बात नहीं है कि इससे हमेशा ही अंधेपन का ख़तरा हो. ब्रिटेन में उम्र के साथ नज़र की समस्या से क़रीब पाँच लाख लोग प्रभावित हैं.

Saturday, May 30, 2009

सिगरेट पर सचित्र चेतावनी अनिवार्य


सिगरेट पर सचित्र

चेतावनी अनिवार्य

तंबाकू उत्पादों पर सचित्र चेतावनी देने का फ़ैसला काफ़ी समय से टल रहा था
विश्व तंबाकू निषेध दिवस यानी 31 मई से भारत में सभी तंबाकू उत्पादों पर सचित्र चेतावनी देना अनिवार्य हो गया है.भारत सरकार ने आदेश दिया है कि इस दिन से तंबाकू के किसी भी उत्पाद की बिक्री तभी होगी जब उस पर कम से कम 40 फ़ीसदी हिस्से में तस्वीर से चेतावनी दी गई हो.
ये इस चेतावनी के रूप में होगा कि तंबाकू उत्पादों का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.
लोग तंबाकू उत्पादों का सेवन कम करें, इस उद्देश्य से भारत सरकार ने ये क़दम उठाया है.
हालांकि सरकार ने ये फ़ैसला काफ़ी पहले किया था लेकिन तंबाकू उत्पादकों के कड़े विरोध के कारण ये टल रहा था.सरकार ने पिछले साल अगस्त में सिगरेट, बीड़ी और गुटका निर्माताओं को पैकेट पर 'तंबाकू के सेवन से मौत' की चेतावनी छापने का निर्देश दिया था, पर इसे लागू नहीं किया जा सका था. क़ानूनी दांवपेचों के बाद इसकी सीमा 31 मई निर्धारित कर दी गई थी.उल्लेखनीय है कि भारत में तंबाकू का लोग बड़ी संख्या में सेवन करते हैं.दिल्ली और कई अन्य शहरों में सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट, बीड़ी पीने पर पाबंदी है लेकिन शायद ही कभी किसी को इससे लिए सज़ा मिली हो.

Friday, May 29, 2009

कन्वर्जेस के युग में पहुंची हिंदी पत्रकारिता


कन्वर्जेस के युग
में पहुंची
हिंदी पत्रकारिता

तीस मई का दिन हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में उल्लेखनीय है क्योंकि इसी दिन वर्ष 1826 में कोलकाता से पहला हिंदी पत्र उदंत मार्तण्ड शुरू हुआ। हालांकि इससे बहुत पहले वर्ष 1780 में यहीं से जेम्स आगस्टस हिक्की ने बंगाल गजट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर शुरू कर अंग्रेजी पत्रकारिता की शुरुआत कर दी थी। इन 183 वर्षों में हिंदी पत्रकारिता में बड़े आमूल चूल परिवर्तन आए।
अंग्रेजी पत्रकारिता के बरक्स इसके कद और ताकत में व्यापक बढ़ोतरी हुई। कागज से शुरू हुई पत्रकारिता अब कन्वर्जेंस के युग में पहुंच गई है। कन्वर्जेंस के कारण आज खबर मोबाइल, रेडियो, इंटरनेट और टीवी पर कई रूपों में उपलब्ध है। सूचना प्रौद्यागिकी के इस युग में हिंदी पत्र डिजिटल रूपों में उपलब्ध है। वरिष्ठ पत्रकार और जनसंचार विशेषज्ञ प्रोफेसर कमल दीक्षित ने बताया कि पंडित युगल किशोर शुक्ल द्वारा शुरू किए गए उदंत मार्तण्ड के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो उस समय पत्रकारिता का उद्देश्य समाज सुधार, समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार और रूढि़यों का उन्मूलन था। उन्होंने बताया उस समय पत्रकारिता के सामाजिक सरोकार शीर्ष पर थे और व्यावसायिक प्रतिबद्धताएं इनमें बाधक नहीं थीं। युगल किशोर शुक्ल का उदंत मार्तण्ड 79 अंक निकलने पर चार दिसंबर 1827 को बंद हो गया। हालांकि उसके बाद हिंदी में बहुत सारे पत्र निकले। राजा राम मोहनराय ने हिंदी सहित तीन भाषाओं में 1829 में बंगदूत नामक पत्र शुरू किया। सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और माइक्रोसाफ्ट मोस्ट वैल्यूबल पर्सन से सम्मानित बालेन्दु दाधीच के अनुसार जो मौजूदा प्रवृत्ति है, उसके अनुसार हिंदी के अखबारों पर प्रासंगिक और तेज बने रहने का भारी दबाव है। ई पेपर उसी दिशा में एक अग्रगामी कदम है। यह अवसर भौगोलिक सीमाओं को पार करने और व्यावसायिक अवसरों के दोहन को लेकर है। प्रोफेसर दीक्षित के अनुसार हिंदी पत्रकारिता में मानवोचित मूल्यों को स्थान देने में पूर्व की अपेक्षा कमी आई है। 1950 से 55 के दशक तक जिस हिंदी पत्रकारिता को बाजार की सफलता के मानकों पर खरा नहीं माना जाता था, उसके प्रति विचारधारा परिवर्तित हुई है। उन्होंने बताया कि अस्सी के दशक के बाद से स्थिति यह हो गई कि अंग्रेजी से लेकर बड़ा से बड़ा भाषाई समूह हिंदी में अखबार शुरू करने में रुचि दिखाने लगा। हालांकि विकास के बड़े अवसर हैं, लेकिन हिंदी पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं। दाधीच कहते हैं कि हिंदी पत्रकारिता का इंटरनेट के क्षेत्र में जाने का मकसद अपने प्रभाव क्षेत्र में बढ़ोतरी करना होता है। मीडिया हाउस पर अब खबरों के व्यापार का एकाधिकार नहीं रह गया है। गूगल और याहू जैसी कई कंपनियां भी खबरों के प्रसार के प्रमुख स्रोत के रूप में काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रिंट मीडिया प्रसार संख्या पर आधारित है, ई पेपर भी अब इसमें शामिल किया जाने लगा है। बालेंदु दाधीच ने बताया कि हिंदी सहित अन्य भाषाओं के वेब पत्रों में बिजनेस माडल का अभाव है। विज्ञापनों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है, लेकिन जिस प्रकार विदेशों में प्रिंट से वेब में पत्रकारिता की प्रस्तुति बढ़ी है। वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी यही रूप स्वीकार होगा। प्रोफेसर दीक्षित ने बताया कि हिंदी पत्रकारिता ने एक समय अपना भाषाई समाज रचने में बहुत बड़ा योगदान दिया। दिनमान और धर्मयुग जैसे पत्रों ने हिंदी पाठक को उन विषयों पर सोचने और समझने का अवसर दिया, जिन पर केवल अंग्रेजी का एकाधिकार माना जाता था। अंग्रेजी में श्रेष्ठत्व के नाम पर दावा करने की कोई चीज नहीं है। हिंदी उस बराबरी पर पहुंच गई है। हालांकि परंपरा में अंग्रेजी पत्रकारिता हिंदी से आगे है लेकिन हिंदी पत्रकारिता ने भी लंबी दूरी तय की है।

(आभार एजेंसी)

Wednesday, May 27, 2009

60 साल में 2000 से अधिक परमाणु विस्फोट




60 साल में 2000 से

अधिक परमाणु विस्फोट

उत्तर कोरिया ने अपना दूसरा

परमाणु परीक्षण विस्फोट किया।
दुनिया के देशों ने पिछले 61 वर्षों में परीक्षणों के लिए 2,000 से अधिक परमाणु विस्फोट किए हैं। 1945 में पहला अमेरिका द्वारा जापान पर पहला परमाणु बम गिराए जाने से लेकर 2006 तक कुल आठ देशों ने 2000 से अधिक परमाणु विस्फोट किए हैं जिनमें सबसे ज्यादा संख्या अमेरिका द्वारा किए गए परमाणु विस्फोटों की है। उसने कुल 1,032 परमाणु विस्फोट किए हैं। उसके बाद रूस (715) और फ्रांस (210 विस्फोट) का नंबर है। भारत ने अब तक कुल तीन बार परीक्षण के लिए परमाणु विस्फोट किए हैं।
परमाणु शक्ति सम्पन्न देश और उनके द्वारा किए गए परमाणु विस्फोटों की संख्या इस प्रकार है।
अमेरिका- 1,032
रूस ( पूर्व सोवियत संघ) – 715
फ्रांस- 210
चीन- 45
ब्रिटेन- 45
भारत -3
पाकिस्तान -2
उत्तर कोरिया- 2

Tuesday, May 26, 2009

आखिर ये चक्रवात क्या बला हैं

आखिर ये चक्रवात

क्या बला हैं

पिछले साल मई महीने में म्यांमार में समुद्री चक्रवात नरगिस ने एक लाख से भी ज्यादा लोगों की जान ली थी। ऐसे में ये समझना जरूरी है कि ये समुद्री चक्रवात होते क्या हैं?
समुद्री तूफान जिन्हें चक्रवात भी कहते हैं, कई तरह के होते हैं। इनकी ताकत और बनावट के मुताबिक इन्हें नाम दिया जाता है। इन तूफानों को खासकर हरिकेन या साइक्लोन कहा जाता है। हरिकेन ज्यादातर क्लॉकवाइज घूमते हैं और खासकर Northern hemisphere में बनते हैं। इसलिए इनको ट्रॉपिकल साइक्लोन्स यानि चक्रवात भी कहा जाता है। इन चक्रवातों को इस तरह से बांटा जा सकता है।
1. ट्रॉपिकल डिप्रेशन - इनके बनने में बादलों की मुख्य भूमिका होती है। ऐसे तूफानों की गति 38 मील प्रति घंटा या उससे कम होती है।
2. ट्रॉपिकल स्टॉर्म (तूफान) - ये तूफान काफी तेजी के साथ आगे बढ़ते हैं। इनकी ताकत का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनकी गति 39 से 73 मील प्रति घंटा होती है।
3. हरिकेन - समुद्री चक्रवाती तूफानों में हरिकेन सबसे खतरनाक तूफान होता है। इसकी ताकत की कोई सीमा नहीं होती। अमेरिका में इसने सबसे ज्यादा तबाही मचाई है। कैटरीना और रीटा पिछले कुछ सालों में अमेरिका में आए मशहूर हरिकेन हैं। हरिकेन की गति 74 मील प्रति घंटा या ज्यादा तक हो सकती है। इसे टाइफून और साइक्लोन भी कहा जाता है।

Monday, May 25, 2009

अध्यापक के रूप में शुरु हुआ था डॉ.सिंह का सफर

अध्यापक के रूप में

शुरु हुआ था

डॉ.सिंह का सफर

आर्थिक सुधारों के जनक एवं देश को 'परमाणु वनवास से उबारने वाले कुशल प्रशासक मनमोहन सिंह लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री का दायित्व संभालने जा रहे हैं। एक मंजे हुए अर्थशास्त्री के रूप में भारत में ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी साख है तथा मौजूदा विश्व आर्थिक मंदी के दौर में विश्व नेता डॉ. सिंह की राय को तवज्जो देते हैं। लोकसभा चुनाव 2009 में मिली जीत के बाद वह जवाहरलाल नेहरु के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बन गए हैं, जिन्हें पांच वर्षों का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला है। उन्होंने 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्तमंत्री के रुप में भी कार्य किया है। वित्तमंत्री के रुप में उन्होंने भारत में आर्थिक सुधारों की शुरआत की। डॉ. सिंह का प्रिय कथन है, "उस विचार को हकीकत में आने से नहीं रोका जा सकता जिसका समय आ गया है"। इसी सोच के आधार पर उन्होंने मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले एक समाजवादी देश को खुली उदारवादी अर्थव्यवस्था की ओर मोड़ दिया। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विदेशनीति को भी नई दिशा दी तथा अमेरिका का सहयोग हासिल कर देश को 30 वर्षों से कायम 'परमाणु वनवासÓ से बाहर निकाला। डॉ. सिंह को सही मायनों में एक विचारक और विद्वान के रुप में जयजयकार मिली है। अपनी कर्मठता और कार्य के प्रति अपने शैक्षणिक दृष्टिकोण के साथ-साथ स्पष्टवादिता और आडंबरविहीन आचरण के लिए जाने जाने वाले डॉ. सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गांव गाह में हुआ था। जो इस समय पाकिस्तान में है। उन्होंने वर्ष 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनके शैक्षणिक जीवन ने उन्हें पंजाब से कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय पहुंचाया। जहां उन्होंने वर्ष 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी में स्नातक डिग्री हासिल की। इसके पश्चात वर्ष 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल किया। डॉ. सिंह ने अपनी पुस्तक 'इंडियाज एक्सपोर्ट ट्रेन्डस एण्ड प्रोस्पेक्टस फॉर सेल्फ सस्टेन्ड ग्रोथÓ में भारत के आंतरिक व्यापार पर केन्द्रित नीति की प्रारंभिक समीक्षा की थी। यह पुस्तक इस संबंध में पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है। डॉ. सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वह पंजाब विश्वविद्यालय और बाद प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वह अंकटाड सचिवालय में सलाहकार भी रहे और 1987 तथा 1990 में जिनेवा में संयुक्त कमिशन में सचिव रहे। 1971 में डॉ. सिंह को वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार तथा 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष रहे। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डॉ. सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्तमंत्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना जाता है। डॉ. सिंह को उनके सार्वजनिक जीवन में प्रदान किए गए कई पुरस्कारों और सम्मानों में देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्म विभूषण, भारतीय विज्ञान कांग्रेस का 'जवाहरलाल नेहरु जन्म शताब्दी पुरस्कार, वित्तमंत्री के लिए 'एशिया मनी एवॉर्ड और 'यूरो मनी एवॉर्डÓ, क्रैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का 'एडम स्मिथ पुरस्कार और कैम्ब्रिज में सेंट जॉन्स कॉलेज में विशिष्ट कार्य के लिए 'रॉयटर्स पुरस्कार प्रमुख थे। डॉ. सिंह को जापानी निहोन कीजई शिमबन सहित अन्य कई संस्थाओं से भी सम्मान प्राप्त हो चुका है। डॉ. सिंह ने कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधत्व किया है। उन्होंने साइप्रस में आयोजित सरकार के राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक (1993) में और वर्ष 1993 में वियना में आयोजित मानवाधिकार पर विश्व सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया है। अपने राजनीतिक जीवन में डॉ. सिंह वर्ष 1991 से भारत के संसद और ऊपरी सदन (राज्यसभा) के सदस्य रहे हैं, जहां वह वर्ष 1998 और 2004 के दौरान विपक्ष के नेता थे। डॉ. सिंह की तीन पुत्रियां हैं।
डॉ. सिंह के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव इस प्रकार हैं-
1957 से 1965 चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक
1969-1971 दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रोफेसर
1976 दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में मानद प्रोफेसर
1982 से 1985 भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर
1985 से 1987 योजना आयोग के उपाध्यक्ष
1987 पद्मविभूषण से सम्मानित
1990 से 1991 भारतीय प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार
1991 नरसिम्हाराव सरकार में वित्तमंत्री
1991 असम से राज्यसभा के सदस्य
1995 दूसरी बार राज्यसभा के सदस्य
1996 दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफेसर
1999 दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए
2001 तीसरी बार राज्यसभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता
2004 भारत के प्रधानमंत्री एवं 2009 दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री

Friday, May 22, 2009

प्रधानमंत्री पद:, मनमोहन ने नेहरु की बराबरी की


प्रधानमंत्री पद:,
मनमोहन ने नेहरु
की बराबरी की
डॉ. मनमोहन सिंह प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के बाद ऐसे दूसरे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें पांच साल का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। स्वतंत्र भारत के इतिहास में पंडित नेहरु और डॉ. सिंह के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उन तीन शख्सियतों में शामिल हैं, जो पांच वर्षों का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। डॉ. सिंह से पहले के प्रधानमंत्रियों पर नजर डालने पर पता चलता है कि पंडित नेहरु और उनकी सुपुत्री इंदिरा गांधी चार-चार बार, जबकि भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार और गुलजारी लाल नंदा दो बार प्रधानमंत्री बने। डॉ. मनमोहन सिंह पांच साल का कार्यकाल पूरा करके दूसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बने हैं। पंडित नेहरु 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिलने पर गठित अंतरिम सरकार में प्रधानमंत्री बने और 27 मई 1964 में अपनी मृत्यु तक प्रधानमंत्री बने रहे। स्वतंत्र भारत में 1951-1952 में पहले चुनाव के बाद वे दोबारा प्रधानमंत्री बने और 1957 में हुए दूसरे चुनाव में तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने गए। इसके बाद 1962 में हुए तीसरे चुनाव में वह चौथी बार प्रधानमंत्री बने और मृत्यु तक प्रधानमंत्री बने रहे। पंडित नेहरु की मृत्यु के बाद 27 मई 1964 को गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया जो 9 जून 1964 तक इस पद पर बने रहे। इसके बाद नंदा को 11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री की अचानक हुई मौत के बाद एक बार फिर कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया। श्रीमती इंदिरा गांधी को 1966 में 24 जनवरी को प्रधानमंत्री बनाया गया। इसके बाद 1967 में हुए लोकसभा चुनाव में वे जनादेश के जरिए दोबारा प्रधानमंत्री बनीं। वर्ष 1971 में हुए चुनाव में जनता ने उन्हें भारी बहुमत देकर तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाया। लेकिन फिर उन्होंने 26 जून 1975 को देश में आपातकाल लगा दिया जिसका खामियाजा उन्हें 1977 में हुए चुनावों में भुगतना पड़ा और जनता ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया। इसके बाद 1980 में हुए चुनाव में उनकी भारी बहुमत से सत्ता में वापसी हुई और वे 31 अक्तूबर 1984 में अपनी हत्या के समय तक प्रधानमंत्री बनी रहीं। अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार प्रधानमंत्री बने। पहली बार 13 दिन के लिए, दूसरी बार 13 महीनों के लिए और तीसरी बार पांच वर्ष के लिए। वह पांच वर्ष के कार्यकाल के लिए एक बार ही प्रधानमंत्री बने।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में प्रधानमंत्री बनने वाले शख्सितों की सूची एवं अन्य विवरण इस प्रकार है-
जवाहरलाल नेहरु 15 अगस्त 1947 से लेकर 27 मई 1964 तक,
गुलजारी लाल नंदा 27 मई 1964 से 9 जून 1964 तक कार्यवाक प्रधानमंत्री रहे,
लाल बहादुर शास्त्री 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 तक,
गुलजारी लाल नंदा 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे,
इंदिरा गांधी 24 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1977 तक,
मोरारजी देसाई 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक (जनता पार्टी सरकार)
चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक (जनता पार्टी सरकार)
इंदिरा गांधी 14 जनवरी 1980 से 31 अक्टूबर 1984 तक,
राजीव गांधी 31 अक्तूबर 1984 से 2 दिसंबर 1989 तक,
विश्वनाथ प्रताप सिंह 2 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990 तक,
चंद्रशेखर 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक,
नरसिंह राव 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक,
अटल बिहारी वाजपेयी 16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक (भाजपा सरकार)
एचडी. देवगौड़ा 1 जून 1996 से 21 अप्रैल 1997 तक (जनता दल सरकार)
इंद्रकुमार गुजराल 21 अप्रैल 1997 से 19 मार्च 1998 तक (जनता दल सरकार)
अटल बिहारी वाजपेयी 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक (भाजपा सरकार)
डॉ. मनमोहन सिंह 22 मई 2004 से 18 मई 2009 तक।
डां. मनमोहन सिंह 22 मई 2009 से...

Wednesday, May 20, 2009

'153 के ख़िलाफ़ हैं आपराधिक मामले दर्ज'





'153 के ख़िलाफ़ हैं

आपराधिक मामले दर्ज'

भाजपा के 43 और कांग्रेस के 41 सांसदों के ख़िलाफ़ अपराधिक मामले दर्ज हैं
भारत में हुए पंद्रहवी लोकसभा चुनाव में कम से कम 153 ऐसे सांसद चुने गए हैं जिन के ख़िलाफ़ अपराधिक मामले दर्ज हैं. भारतीय चुनाव प्रक्रिया में सुधार को लेकर काम करने वाले एक ग़ैर सरकारी संगठन 'एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ार्म' और 'नेशनल एलेक्शन वॉच' ने एक प्रेस विज्ञप्ति में ये जानकारी दी है.
इन संगठनों के अनुसार ऐसे सांसदों की सबसे ज़्यादा संख्या भारतीय जनता पार्टी में है.
जहाँ भाजपा के 43 सांसदों के ख़िलाफ़ अपराधिक मामले दर्ज हैं, वहीं कांग्रेस 41 सांसदों के साथ इस मामले में दूसरे नंबर पर है. 153 सांसद ऐसे हैं जिनके ख़िलाफ़ अपराधिक मामले दर्ज हैं इनमें से 74 के ख़िलाफ़ गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं
एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ार्म संगठन ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को पत्र लिख कर अपील की है कि वे इन सांसदों को कैबिनेट में शामिल न करें. प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक - "153 सांसद ऐसे हैं जिनके ख़िलाफ़ अपराधिक मामले दर्ज हैं, इनमें से 74 के ख़िलाफ़ गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं."
विपक्षी पार्टी भाजपा के अपराधिक मामलों में उलझे 43 सांसदों में से 19 सांसदों के ख़िलाफ़ गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं जबकि कांग्रेस के 12 सांसदों के ख़िलाफ़ गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं.
बाहर रखने की अपील
इस अध्ययन के मुताबिक, "अपराधिक छवि वाले ऐसे कई बाहुबली नेताओं को मतदाताओं ने इस चुनाव में ख़ारिज कर दिया है. वर्ष 2004 में लोकसभा के लिए चुने गए पाँच सांसद जिनके ख़िलाफ़ अपराधिक मामले थे, वे इस चुनाव में हार गए हैं."
ऐसे कई बाहुबली नेताओं को जिनकी अपराधिक छवि है मतदाताओं ने इस चुनाव में ख़ारिज कर दिया है. वर्ष 2004 में लोकसभा के लिए चुने गए पाँच सांसद जिनके ख़िलाफ़ अपराधिक मामले थे वे इस चुनाव में हार गए हैं
एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ार्म संगठन ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गाँधी और पार्टी के महासचिव राहुल गाँधी को पत्र लिख कर अपील की है कि जिन सांसदों के ख़िलाफ़ अपराधिक मामले दर्ज हैं, उन्हें सरकार में और किसी संसदीय समिति में भी शामिल न किया जाए. भारत में जिन लोगों के खिलाफ़ सिर्फ़ अपराधिक मामले दर्ज हैं उन्हें चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता है लेकिन जिन लोगों को अदालत ने दोषी ठहरा दिया हो, वे चुनाव नहीं लड़ सकते.
ग़ौरतलब है कि भारतीय कानून व्यवस्था में एक मामले की सुनवाई में कई बार वर्षों लग जाते हैं.

Thursday, May 14, 2009

ये कैसी संवेदना ?


ये कैसी संवेदना ?
विस्फोट के बाद
घटनास्थल पहुंचे
पूर्व और वर्तमान गृहमंत्री
की हंसी ठिठोली
क्या आज नेता सिर्फ बयानबाजी करने और समाचार पत्रों तथा टीवी चैनलों में सिर्फ अपना चेहरा और नाम छपाने और दिखाने के लिए रह गए हैं ? उन्हें किसी की भावना और दुख का जरा भी ख्याल नहीं है? 10 मई को छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के नगरी सिहावा के रिसगांव में नक्सलियों ने ब्लास्ट और फायरिंग से 13 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। कई घरों का चिराग एक पल में ही बुझ गया। कई परिवारों का सहारा क्षणभर में हमेशा के लिए छीन गया। इस घटना पर राज्य के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने राजनीतिक रुप देने की कोशिश की और बयान जारी किया कि पांच सदस्यीय टीम घटनास्थल पर जाकर जांच करेगी। इस घटना के समय अपने गृहग्राम में बैठे गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के कहने के बाद रायपुर आना गंवारा समझा और दूसरे दिन वे घटनास्थल के लिए रवाना हुए। उनके साथ कांग्रेस के पूर्व गृहमंत्री नंदकुमार पटेल,नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, विधायक धमतरी गुरमुखसिंह होरा,विधायक सिहावा अंबिका मरकाम आदि के साथ दर्जनों ग्रामीण तथा सैकड़ों पुलिस के अधिकारी और जवान भी घटनास्थल पहुंचे। प्रदेश के गृहमंत्री का घटनास्थल पर पहुंचने को लेकर पुलिस महकमें के जवानों और अधिकारियों के हौसले बढ़े हुए नजर आ रहे थे लेकिन जिस जगह पर विस्फोट हुआ जहां पर जमीन के भीतर आधी धंसी हुई चारपहिया वाहन खड़ी हुई थी उस स्थान पर ना जाने पूर्व गृहमंत्री और वर्तमान गृहमंत्री को किस बात पर इतनी जोर से हंसी आ गई कि वे एक दूसरे को ताली भी दे बैठे। उस समय वहां मौजूद उनके साथ गया हर वो शख्स हंस रहा था जिसके घर का कोई भी व्यक्ति देश सेवा के लिए शहीद नहीं हुआ। ऐसी जगह पर ठहाके लगाते समय उन्हें उन लोगों का जरा भी ख्याल नहीं आया जिनके घरों में मातम छाया हुआ है जो जवान उनके साथ उनकी सुरक्षा के लिए घटनास्थल पर डटे हुए थे। इस हंसी से वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों और पुलिस अधिकारियों पर क्या बीती होगी वे ही बता सकते हैं। उस हंसी पर उनके मन में क्या सवाल उठे होंगे वे ही जानें क्या इससे उनके मनोबल पर प्रभाव नही पड़ा होगा ? जहां पर चार दिनों पहले 13 जवानों की मौत हुई वहां गोलियों की दनदनाहट गूंजती रही ऐसी जगह पर इतने जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं की हंसी-ठिठोली का क्या औचित्य था ? क्या नेताओं में संवेदना इतनी खत्म हो गई है कि वे ऐसे स्थान पर हंसे जहां प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या ने दो दिनों पहले मौत का नंगा नाच खेला था? जब घटनास्थल पर वे इस तरह दिखे तो वे अपने मंत्रालय के एसी रुम में अपनी जिम्मेदारी के प्रति कितने गंभीर होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

Wednesday, May 13, 2009

आसमान में सुराख


कौन कहता है कि
आसमान में सुराख
नहीं हो सकता
एक पत्थर तो
तबियत से
उछालो यारों...

Tuesday, May 12, 2009

लोकसभा चुनाव: अंतिम चरण का मतदान 13 को



लोकसभा चुनाव: अंतिम चरण का मतदान 13 को


पांच चरणों में हो रहे लोकसभा चुनावों के अंतिम चरण के मतदान में बुधवार को सात राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के मतदाता 1,432 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे। इनमें 93 महिलाएं भी शामिल हैं।अंतिम चरण में 86 संसदीय क्षेत्रों में 1.07 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर लोकसभा के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे.

लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 16 मई को हुआ था और ठीक एक माह बाद 16 मई को मतगणना का काम आरंभ होगा।निर्वाचन आयोग ने अंतिम चरण के लिए 1,21,000 मतदान केंद्र बनाए हैं, जिनमें 5,00,000 मतदान कर्मी नियुक्त किए गए हैं। अंतिम चरण के मतदान में 1,86,000 इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का इस्तेमाल किया जाएगा। इस दौरान अधिकारियों ने 5,995 गांवों को संवेदनशील घोषित करते हुए कहा है कि वहां मतदान के दौरान अशांति की स्थिति निर्मित हो सकती है।इस चरण में तमिलनाडु की 39, उत्तरप्रदेश की 14, पश्चिम बंगाल की 11, पंजाब की नौ, उत्तराखंड की पांच, हिमाचल प्रदेश की चार तथा जम्मू एवं कश्मीर राज्य की दो संसदीय सीटों पर मतदान होगा। केंद्र शासित प्रदेशों चंडीगढ़ और पुड्डचेरी की एक-एक सीट पर मतदान होगा।

Monday, May 11, 2009

छग के पूरे जंगली क्षेत्रों पर कब्जे की तैयारी में नक्सली


छग के पूरे जंगली क्षेत्र पर कब्जे की फिराक में नक्सली ?


छग के पूरे जंगली क्षेत्र पर


कब्जे की फिराक में नक्सली ?


नगरी सिहावा के शांत इलाके


में नक्सलियों की पहली धमक


अब छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या सिर्फ दंतेवाड़ा, बीजापुर ,मोहला मानपुर और सरगुजा तक ही सिमट कर नहीं रह गई है। नक्सली धीरे-धीरे अब राज्य के हर गांव और कस्बे तक अपनी छाप छोडऩे में सफल हो रहे हैं। ऐसे काम के लिए नक्सलियों ने धमतरी और रायपुर जिले के ऐसे गांवों को निशाना बनाया है जहां से जंगल नजदीक हैं या जो गांव जंगल के करीब है। यानि कहा जाए तो राज्य के पूरे जंगल पर नक्सली कब्जे की फिराक में हैं तो कोई थोथी बात नहीं होगी। नगरी के रिसगाव में हुई घटना इसकी ओर एक और कदम है। नगरी मार्ग पर कुछ दिनों पहले एक व्यापारी के साथ हूई लूटपाट की घटना ने क्षेत्र में नक्सलियों के पदचाप के संकेत दे दिए थे। लेकिन इतनी जल्दी इस क्षेत्र के लोगों को नक्सली अपना असली चेहरा दिखाएंगे यह किसी ने सोचा भी नहीं था। सुबह-सुबह जब नगरी और आसपास के गांव के लोगों ने हेलीकाप्टर की आवाज सुनी तो उन्हें ऐसा लगा कि कोई नेता तो नहीं आ रहा है। लेकिन कुछ ही देर में सारा माजरा उन्हें समझ में आ गया हमेशा शांत रहने वाले नगरी में एका एक पुलिस की कई वाहनें धड़धड़ती हुई पहुंची उसमें से एक वाहन पर खून से लथपथ जवानों पर जब लोगों की नजर पड़ी तो समझ गए कि जिसका डर था वही हुआ। नक्सलियों ने वहां से तीस किलोमीटर दूर रिसगांव की पहाडिय़ों पर नगरी और आसपास के घर के जवानों को हमेशा के लिए मौत की नींद सुलाकर ऐसा जख्म दे दिया जिसकी धमक क्षेत्र के लोगों कीे कानों में आने वाले कई सालों तक गूंजती रहेगी। सूत्रों की मानें तो धमतरी और रायपुर जिले के रिसगांव, दुगली, सीतानदी अभ्यारण्य,देवभोग, मैनपुर,गरियाबंद,के जंगलों में नक्सलियों की आवाजाही की सूचना लोगों को मिलती रही है लेकिन इतनी बड़ी घटना हो जाने से पूरे क्षेत्र में दहशत का माहौल है। मुख्यमंत्री रमन सिंह और गृहमंत्री ननकीराम कंवर द्वारा दो दिनों पहले ही दिए गए बयानों का नक्सलियों ने जिस अंदाज में जवाब दिया है वह उनके इरादे बताने के लिए काफी है। सरकार की ओर से यह बयान आया था कि अब बातचीत नहीं सीधी लड़ाई होगी। लेकिन सरकार की ओर से पहल कब होगी पता नहीं लेकिन नक्सलियों ने बीते सप्ताह में जिस तरह एक के बाद एक लगातार कई हिंसक वारदातों को अंजाम दिया है इससे एक बात तो साफ है कि वे जो चाहते हैं कर देते हैं। नक्सली हर बार अपने इरादों में सफल हो रहे हैं जबकि पुलिस हर बार असफल साबित हा रही है। क्या पुलिस के मुखबिर नक्सलियों के मुखबिर से कमजोर हैं या फिर पुलिस के मुखबिर भी नक्सलियों के लिए काम करने लगे हैं? पिछले कुछ दिनों से लगातार नक्सलियों द्वारा की जा रही वारदातों पर नजर डालें तो एक बात तो साफ है कि नक्सली जंगलों से लगे गांवों तक अपनी घुसपैठ मजबूत करने में लगे हैं ऐसा कर कहीं वे राजधानी को चारो ओर से घेरने की तैयारी में तो नहीं हैं?

Thursday, May 7, 2009

पानी के चक्कर में हो गया गुलाम...


पानी के चक्कर

में हो गया गुलाम...



शहर में घुसा तेदुंआ


कल्पना से परे हो गई घटना
उसे प्यास लगी थी लेकिन उसे क्या पता था कि प्यास बुझाने के लिए वह उस स्थान तक पहुंच जाएगा जहां पर इंसान बसते हैं। रात के अंधेरे में उसके कदम पानी की तलाश में घनी आबादी की ओर चल पड़े। उसे पानी मिला कि नहीं यह तो वही जानें पर पानी के चक्कर में उसकी जिंदगी गुलाम जरुर हो गई। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के आसपास इतने घने जंगल नहीं है कि वहां जंगली जानवर बसेरा कर सकें। लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि यहां के डब्लूआरएस कालोनी के वैगन रिपेयर शाप की ओर के घने जंगलों में तेंदुआ के होने का आभास होता रहा है। डब्लूआरएस कालोनी से शहर तक का इतना लंबा रास्ता तय करके शहर में पहुंचे तेंदुए ने किसी को कुछ नहीं किया या ताज्जुब की बात है। वो जिस रास्ते से भी वहां तक पहुचा हो लेकिन उसका किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना यह संकेत देता है कि वह अपनी (प्यास बुझाने) जान बचाने के लिए वहां तक पहुंचा था। क्योंकि रायपुर कभी सोता नहीं और इतनी गर्मी में यहां के लोग रातभर जागते हुए सड़कों पर टहलते ही रहते हैं। खैर जो भी हो जंगल में बसेरा करने वाले जानवर वो भी तेंदुआ जैसे जानवर का शहर में प्रवेश करना किसी परिवर्तन की तरफ इशारा कर रहे हैं। इस परिवर्तन के लिए वे लोग जिम्मेदार हैं जो आधुनिकता की दौड़ मे अंधे होकर जंगलों को तबाह करने पर तुले हुए हैं। विकास के नाम पर जंगलों और वहां मौजूद जलश्रोतों को खत्म करने में लगे हैं। जंगल के आसपास के गांव में कभी-कभार घुस जाने वाले जानवर का किसी राज्य की राजधानी में प्रवेश करना किसी दुर्घटना से कम नहीं है। रायपुर शहर का एक भी व्यक्ति इस बात की कल्पना तक नहीं कर सकता था कि तेंदुआ जैसा खूंखार जानवर शहर के भीतर रिहायशी इलाके में इस तरह प्रवेश कर जाएगा और शहर में सो रहे इंसानों को इसकी भनक तक नहीं होगी। वन विभाग के अफसर इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आखिर वह आया कहां से। खैर वह आया जहां से भी हो लेकिन यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि वह सिर्फ पानी की तलाश में ही आया था। मनुष्य ने प्रकृति के साथ जिस तरह से खिलवाड़ किया है इसी का परिणाम है कि आज एक जानवर अपनी प्यास बुझाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर जंगल से शहर में आ पहुंचा। उसकी प्यास बुझी कि नहीं वह तो तेंदुआ ही जानें पर इसके चक्कर में उसने अपनी स्वतंत्रता गंवा दी। अब वह जंगल की आजाद मदमस्त जिंदगी से पिंजरे की कैद में पहुंच गया है। अब उसकी जिंदगी पर इंसानों का कब्जा है और अब इंसानों की इच्छा पर निर्भर है कि वे उसे आजाद करते हैं कि पिंजरे की शोभा बढ़ाने के लिए किसी पार्क में रखते हैं।

Tuesday, May 5, 2009

चौथे चरण का मतदान ७ मई को


चौथे चरण का

मतदान

७ मई को

चौथे चरण के चुनाव में 85 सीटों पर मतदान होना है
भारत में लोकसभा चुनाव के चौथे चरण का प्रचार मंगलवार शाम को समाप्त हो गया. चौथे चरण में 85 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो रहा है और 1315 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं जिनमें से 119 महिलाएँ हैं. चौथे चरण के लिए मतदान सात मई को होगा. इस चरण में जिन प्रमुख नेताओं के राजनीतिक भाग्य का फ़ैसला होगा उनमें भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, वरिष्ठ कांग्रेसी प्रणब मुखर्जी, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह, राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव प्रमुख हैं.
चौथे चरण की सीटें
राजस्थान की 25
हरियाणा की 10
दिल्ली की सात
बिहार की तीन
पंजाब की चार
पश्चिम बंगाल की 17
उत्तर प्रदेश की 18
जम्मू-कश्मीर की एक
इस चरण में राजस्थान की सभी 25 सीटों, हरियाणा की सभी दस सीटों, दिल्ली की सभी सात सीटों के लिए मतदान होगा. साथ ही बिहार की कुल 40 में से तीन सीटों, भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर की छह में से एक सीट, पंजाब की कुल 13 में से चार सीटों, उत्तर प्रदेश की कुल 80 में से 18 सीटों और पश्चिम बंगाल की कुल 42 में से 17 सीटों पर वोट डाले जाएँगे. चाथे चरण के पूरे होने के बाद लोकसभा की कुल 543 में से 457 सीटों के लिए मतदान पूरा हो जाएगा.

Sunday, May 3, 2009

awaaz: जूता-चप्पल (पड़ेगा)

awaaz: जूता-चप्पल (पड़ेगा)

जूता-चप्पल (पड़ेगा)


जूता-चप्पल (पड़ेगा)


क्रान्ति का प्रतीक

बनेगा जूता-चप्पल
आजादी के समय अंग्रेजों से लोहा लेने वाले आजादी के परवानों ने मशाल का उपयोग कर क्रांति की शुरूआत की थी,तब से मशाल को क्रांति का प्रतीक माना जाता है। आजादी के 61 वर्ष बाद 21वीं सदी की और जा रहे भारत देश में वर्तमान मे जो हालात पैदा हुए हैं उससे ऐसा लग रहा है कि आने वाले कुछ सालों बाद जूते- चप्पलों को क्रांति का प्रतीक माना जाएगा। क्योकि नेताओं की सभा में चले जूते चप्पलों को नेताओं के लिए जनता की चेतावनी मान सकते हैं कि अभी समय है सुधर जाएं नहीं तो परिणाम भयंकर होगा? वर्तमान में देश के भीतर जिस तरह से अव्यवस्था ने पांव पसारे हैंं, लूटखसोट , भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। सरकारी नुमाइंदे तथा सभी कायदे कानून सिर्फ पूॅंजीपतियों की बपौती बनकर रह गई है और आम जनता तथा गरीबों की पूछ परख नही होने से आमजनता में काफी आक्रोश है इसके लिए नेताओं और राजनीति से जुड़े लोगों को जिम्मेदार माना जाता है। पिछले कुछ समय से देश में राजनीति से जुड़े बड़े पदासीन नेताओं पर जिस तरह जनता के द्वारा जूूते-चप्पल फेंके जा रहे हैं उसे आज जनता के इसी आक्रोश का नतीजा मान सकते हैं। जिन नेताओं पर अब तक जूते चप्पल फेंके गए हैं गौर करें तो जूता चप्पल फेंकने वाला उनके किसी ना किसी फैसले या छवि से आक्रोशित रहा है, जैसे गृहमंत्री पी.चिदंबरम पर जूता फेंकने वाला भले ही प्रेस कांफ्रेस में मौजूद एक पत्रकार (जनरैल सिंह)था लेकिन उसे गृहमंत्रालय के जारी आदेश पर सिख समाज के व्यक्ति का आक्रोश मान सकते हैं। उस पत्रकार के जूते ने वह काम कर दिया जो सिक्ख समाज द्वारा धरना-प्रदर्शन के बाद शायद ही संभव हो पाता। इस घटना के बाद मजबूरन सत्ताधारी पार्टी (यूपीए)को अपने दो बड़े नेताओं की लोकसभा की टिकट काटनी पड़ी। इस घटना के बाद बाद तो जैसे जूता-चप्पल ने क्रांति का चोला पहन लिया हो। एमपी में सांसद नवीन जिंदल की सभा में एक किसान द्वारा चप्पल उछाली गई। बताते हैं कि उस किसान ने सांसद की निष्क्रियता से उद्वेलित होकर चप्पल फेंकी थी। इसके बाद भाजपा के वेटिंग इन पीएम लालकृष्ण आडवानी की आमसभा में ,अभिनेता जीतेन्द्र की रैली में , फिर देश को चलाने वाले मुखिया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आमसभा में और ना जाने कहां-कहां जूता-चप्पल उछालने का दौर लगातार चल रहा है। मेरे ख्याल से जूता-चप्पल फेंकने की इस घटना को हल्केपन से लेना नासमझी होगी,क्योंकि भले ही इसे कु छ लोग पब्लिसिटी स्टंट मानकर चल रहे हों पर सच्चाई कुछ और ही है। यह कहीं ना कहीं आमजनता के मन की भड़ास और व्यवस्था से पीडि़त परेशान लोगों का आक्रोश है जो धीरे-धीरे भड़क ने लगा है। इस आक्र ोश का भड़कना लाजिमी भी है क्योंकि आमजनता हर बार नेताओं के हाथों ठगे जाते हैं हर पांच साल में एक बार वे उनकी दरबार में आते हैं मीठे-मीठे लुभावने वायदें करते हैें और हंसीन सपने दिखाकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं, इसके बाद पांच सालों तक अपना चेहरा तक जनता को नहीं दिखाते। आने वाले वर्षों में भी यदि करप्शन, अव्यवस्था, बेरोजगारी,भूखमरी और गरीबी का यही हाल रहा तो आगामी चुनाव में चलने वाले जूते-चप्पलों की संख्या में काफी इजाफा हो सकता है और इस बार अब तक सही निशाने पर नहीं पहुंचने वाला यह हथियार सीधे निशाने पर जाकर बैठेगा और क्रांति के इस नए हथियार से एक नए अध्याय का शुभारंभ होगा।

Saturday, May 2, 2009

awaaz: सरकार वही जो सीबीआई का सदुपयोग करना जाने...

awaaz: सरकार वही जो सीबीआई का सदुपयोग करना जाने...

सरकार वही जो सीबीआई का सदुपयोग करना जाने...

सरकार वही जो

सीबीआई का

सदुपयोग

करना जाने...


कौन कहता है कि मनमोहन सिंह कमजोर प्रधानमंत्री हैं। जाहिर है कि विपक्ष के नेता उन्हें कमजोर कहते हैं। लेकिन असलियत यही है कि मनमोहन सिंह कहीं से भी कमजोर प्रधानमंत्री नहीं हैं बल्कि यह कहा जाय कि वे भाजपा नीत एनडीए सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मुकाबले ज्यादा मजबूत प्रधानमंत्री निकले । तभी तो उन्होंने पांच साल की सरकार में उन तमाम नेताओं को तथा कुछ अन्य को भी सीबीआई के जरिये वह राहत दिलाने की कोशिश कर ली जो अपनी सरकार के समय भाजपा चाहकर भी नहीं कर सकी। लोकसभा चुनाव के परिणाम आने पर जिन-जिन दलों के सहयोग की जरूरत पड़ सकती है उनके नेताओं को सीबीआई के जरिये सरकार की मेहरबानी का अंदाज हो रहा हैं। बिहार में लालू प्रसाद यादव भले ही अल्पसंख्यक वोटों पर प्रभाव डालने की गरज से कांग्रेस पर हवाई फायर कर रहे हैं लेकिन मनमोहन की सरकार में मंत्री रहते हुए लालू प्रसाद यादव को सीबीआई की ओर से जितना सहारा मिला है वह किसी और की सरकार के रहते लालू अपेक्षित ही नहीं कर सकते । इसी तरह मुलायम सिंह यादव उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की खिलाफ आग उगल रहे हैं लेकिन उनके मामलों में भी स्थिति यही है कि जब भी कांग्रेस को उनके समर्थन की जरूरत होगी वे दौड़े चले आयेंगे। सरकार की अप्रत्यक्ष मेहरबानी का दायरा यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि 16 मई को आने वाले परिणाम की कुछ भनक शायद पहले ही लग गई है इसलिए ताज कारीडोर मामले में उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री तथा बसपा सुप्रीमो मायावती पर भी कृपा हो गई है। ताज कारीडोर तथा आय से अधिक संपत्ति जैसे मामलों में सीबीआई का नजरिया माया के प्रति मुलायम कैसे हो गया, इसके राजनीतिक कारण तलाशने वाले यदि तलाश सकते हों तो अभी से तलाश लें। माया को राहत पहुंचाने की कोशिशों के पीछे असल वजह क्या है, यह तो कोई भी प्रमाणित रूप से नहीं बता सकता लेकिन राजनीति के गलियारों में अंदाज लगाया जा रहा है कि यदि 16 तारीख के बाद माया की जरूरत पड़ी तो उनके समर्थन का भी इंतजाम कर लिया गया है। बीते पांच वर्षों में यूपीए सरकार के दौरान सीबीआई के राजनीति करण के ढेरों आरोप लगे हैं और कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर, बोफोर्स मामले के आरोपी क्वात्रोच्चि, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, रेलमंत्री लालूप्रसाद यादव तथा उनकी पत्नी रावड़ी देवी के मामलों में सीबीआई का नजरिया जिस रूप में सामने आया है उससे इन आरोपों को बल मिला है।यूपीए सरकार ने हमेशा यही दलील दी है कि सीबीआई पर उसने कोई दबाव नहीं बनाया लेकिन सरकार के सहयोगियों तथा संभावित सहयोगियों को जिस तरह राहत मिलती रही है उसके संदर्भ में सरकार की दलील को कौन दिल से कबूल कर पायेगा? राजनीति में अब नैतिकता नहीं बल्कि वह नीति अहम है जिसके तहत राज किया जाये तो मनमोहन सिंह को कमजोर कहने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि राज करने की नीति के मामले में मनमोहन सिंह कहीं से भी कमजोर नहीं हैं। अब यदि कांग्रेस और उसके गठबंधन को सत्ता में आने लायक सीटें नहीं मिलती हैं तब भी कांग्रेस को ऐसे सहयोगी मिल सकते हैं जिन्हें उम्मीद हो कि आड़े वक्त में मनमोहन सिंह की सरकार सीबीआई का सदुपयोग करके यथासंभव राहत दिलवा सकती है।