Thursday, August 19, 2010

नत्था तो नहीं मरा पर ..

नत्था तो नहीं मरा पर ...
किसानो की पीड़ा पर आधारित फिल्म पिपली लाइव में नत्था भले ही न मरे पर आज देश में ऐसे सैकड़ो किसान है जो अपनी व्यथा और सरकारी अनदेखी के कारण मर रहे है. किसानो की हित की बात करने वाली सरकार में आज किसान ही सबसे ज्यादा प्रतार्डित है. कभी अकाल तो कभी भारी बारिश हर हाल में किसान भुगतना किसान को ही पड़ता है. हर साल किसान मौसम की मार झेलता ही है. इतनी विषम परिस्थितियों में भी किसम अपना हौसला नहीं खोता लेकिन जब सरकारी सहायता उन्हें नहीं मिलती तब वो जरुर विचलित हो जाता है. ऐसी बात नहीं है कि सरकार के पास किसानो के लिए योजना नहीं है या फिर सरकार के पास पैसा नहीं है. सरकार के पास सब कुछ है लेकिन सरकारी तंत्र में कुछ ऐसे दलाल और कामचोर व् बेईमान लोग आ गए है जिसके कारण किसानो को मिलने वाला हक़ उन्हें नहीं मिल पाता. जबकि उनके हित का पैसा वो बड़ी चतुराई से डकार जाता है. छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ में देखे तो यहाँ किसान दुसरे कारणों से परेशान है. यहाँ उनके पास जमीन हैं, हल है, बैल है, लेकिन उनके पास कम करने वाले मजदूर नहीं है. जिसके कारण किसानी काम प्रभावित हो रहा है. मजदूर मिल भी रहे है तो उनके भाव इतने बड़े है कि उनका कोई इलाज नहीं है. मजदूर आज इतना भाव ताव इसलिए दिखा रहा है क्योंकि सरकार द्वारा उनको १-२-३ रूपए किलो में चावल दे रहा है. इसलिए अब वो काम नहीं करना चाहते. जब ये योजना चालू हुई है तब से किसानो कि कमर ही टूट गयी है. राज्य सरकार भले ही चावल योजना का पुरे देश में गुणगान करे लेकिन इससे राज्य का भला होने कि बजाय किसानो का बुरा जरुर हो रहा है. हम इसके विरोधी नहीं है कि सरकार गरीबों को चावल न दे जरुर दे लेकिन उन्हें काम के बदले अनाज योजना के रूप में दे ताकि वे मजदूर मेहनत भी करे. इस योजना से मजदूर अब आलसी होते जा रहे है. यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के किसान पिछले कुछ सालों से लगातार परेशान हो रहे है और खेती-बाढ़ी के काम में ज्यादा रूचि नहीं ले रहे है. यही कारण है यहाँ तो हर नत्था परेशान है.

Saturday, August 7, 2010

कामन वेल्थ गेम्स

वेल्थ कमाओ हेल्थ बनाओ
कामन वेल्थ गेम्स की तैयारी में लगे नेता, पदाधिकारी और अधिकारी जिसने चाहा उसने गेम्स के नाम पर जितना अति कर सकते थे किया और कर रहे है. इसका खुलासा गेम्स की तारीख नजदीक आते ही होने लगा है. देश में भ्रस्ताचार ने किस कदर अपने नीव जमा ली है वह कामन वेल्थ गेम्स की तैयारी से सामने आने लगा है. जिस खेल  में जरा सी लापरवाही होने से देश की छवी ख़राब हो सकती उसमे उससे जुड़े लोगों ने अपनी अवकात दिखा दी और सरकारी पैसों का जमकर दुरुपयोग हुआ. सबने अपनी-अपनी जेबे गर्म करना सबसे ज्यादा लाभदायक समझा. देश हित को दरकिनार करते हुए सबने जमकर लूटा. वर्तमान में चल रही कारगुजारियों को देखने से पता चलता है कि देश किस रस्ते पर जा रहा है. पैसा आज इज्जत और खुदा से बढकर हो गया है. इस तरह के काम करने वालों ने को यह जरा भी नहीं सोचा कि जब सच सामने आएगा तो देश कि इज्जत पर भी बात आएगी. क्योंकि इस आयोजन में कई देश के प्रतिभागी और दर्शक आने वाले है. उनके सामने देश कि छवी कैसी होगी इसकी इन भ्रस्ताचारियों को कोई मतलब नहीं है. इसके लिए नेताओं को ही जिम्मेदार माना जा सकता है. क्योंकि देश के सारे नियम कायदे इनके ही द्वारा बनाये जाते है जो इतने शिथिल होते है कि वे इसका मनमानी तरीके से इस्तेमाल कर अपना उल्लू सीधा कर लेते है. देश में इस तरह कि अनगिनत घटनाये लगातार होती रहेंगी जब तक कि इस पर रोक लगाने और पैसों का गबन करने वालों तथा भ्रस्ताचारियों को सबक सिखाने के लिए कोई कठोर कानून नहीं बनाया जायेगा? यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा जब हमारा देश भ्रस्ताचारियों का नंबर वन देश बन जायेगा ? 

Monday, August 2, 2010

फ्रेंडशिप डे

ये कैसा विरोध?
संस्कृति के नाम पर राजधानी रायपुर में बजरंग दल और धर्म सेना के कार्यकर्ताओं  ने फ्रेंडशिप डे पर जिस कदर दिन भर गुंडागर्दी उसकी हर तरफ निंदा हो रही है. एक सभ्य समाज में इस तरह कि करतूत को दंडनीय अपराध मन गया है.लेकिन खुलेआम मजा लेते इन युवकों पर पुलिस भी मेहरबान दिखी. इस तरह कि घटना हमारे समाज के लिए चिंतनीय है क्योंकि  यह हमारे समाज की देन नहीं है. खुलेआम वे तथाकथित कार्यकर्ता जिस तरह युवतियों से अभद्र व्यहार कर रहे थे युवको को लात घूसों से पीट रहे थे इसका हक़ उन्हें किसने दिया? और तो और लाठी लेकर खड़ी पुलिस भी तमाशाई बनी रही. फ्रेंडशिप डे का इन्तेजार कर रहे  संस्कृती के ये रक्षक सुबह से इस ताक में थे कि कब उन्हें कोई जोड़ा दिखे और वो इसका मजा लें. विरोध दर्ज करा रहे युवकों में ऐसे लोगों कि संख्या ज्यादा थी जो खुद छेड़खानी और नशाखोरी कि गिरफ्त में हैं. हुरदंग कर रहे ऐसे लोगों पुलिस ने सिर्फ खानापूर्ति के लिए गिरफ्तार कर लिया जबकि होना ये चाहिए था कि उन्हें गिरफ्तार कर उन्हें कठोर सजा देनी चाहिए थी. यदि इस तरह गुंडागर्दी करने वालों पर कड़ी नहीं की गई तो उनके हौसले लगातार बड़ते ही जायेंगे और शहर में भाई बहनों का भी एक साथ घूमना खतरनाक हो जायेगा. क्योंकि कौन किस परिस्थिति में कहाँ जा रहा है कहाँ बैठा है इससे उन तथाकथित लोगों को कुछ नहीं  करना है.जो साल के केवल चंद दिन संस्कृति की रक्षा का दिखावा करते है. यदि इन तथाकथित कार्यकर्ताओं को संस्कृति का इतना ही ख्याल है तो नंगी फिल्मे क्यों बड़े चाव से देखते है? वो सड़कों पर राह चलती लड़कियों से छेड़खानी क्यों करते हैं? उन्हें इस तरह की हर गन्दी चीजों का विरोध पूरी मजबूती के साथ करना चाहिए. क्या इसके लिए उन्हें अलग से ट्रेनिंग देनी पड़ेगी? संस्कृति के नाम पर इस तरह की मनमानी करने वालो पर कड़ी करवाई करने की जरुरत है