Tuesday, January 25, 2011

पत्रकार पा रहे है जवानी में पेंशन


वर्तमान समय में पत्रकारों की हालत कुछ ऐसी है कि जैसे किसी को जवानी में पेंशन मिल रही हो. वैसे तो पत्रकार समाज का चौथा स्तम्भ है, लेकिन चौथा स्तम्भ  आज सबसे कमजोर और उपेक्षित होता जा रहा है.पत्रकार किसी भी संस्थान से जुड़ा हो उसे पहले ही बता दिया जाता है कि पत्रकार का कोई टाइम टेबल नहीं होता बल्कि उसे २४ घंटे सक्रिय रहना पड़ता है. वह अपने कर्तव्यों को पूरी लगन और तल्लीनता से पूरा भी करता है, लेकिन सस्था उसके लिए क्या करता है यह किसी से छिपा  नहीं है. राजधानी रायपुर कि बात करें तो यहाँ पत्रकारों को इतना कम वेतन मिलता है जिसकी कोई सीमा नहीं है, ये कहे कि पूरे देश में पत्रकारों कि सबसे कम वेतन छत्तीसगढ़ में है तो यह अतिसंयोक्ति नहीं होगी. भले पिछले कुछ सालों में नए अख़बार के आने से पत्रकारों को थोड़ी-बहुत राहत जरुर मिली है,लेकिन बांकी अख़बारों से जुड़े पत्रकारों का यही हाल है. वे चाहकर भी अपना वेतन बढ़ाने कि बात संपादक और जीएम्  के सामने नहीं रख सकते. यदि किसी ने हिम्मत भी की, तो या उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा या फिर उसे इतना प्रताड़ित किया जाता है कि उसे मजबूरन नौकरी छोडनी पड़ती है. उसपर बंदिशे इतनी होती है कि वो प्रेस से जुड़ने के बाद यदि किसी पत्रकार संगठन से जुड़ जाता है तो वो हमेशा मैनेजमेंट के निशाने पर रहता है. और धोके से यदि उसने किसी भी संस्था के मैनेजमेंट से पंगा लिया तो उसे किसी दूसरी संस्था में नौकरी के लिए एड़ी-चोटी एक करना पड़ता है भले ही वह कितना भी योग्य क्यों न हो. वर्तमान के व्यावसायिक परिदृश्य में यदि नजर डाले तो किसी भी संस्था में काम करने के लिए आज योग्यता को कम और चापलूसी को ज्यादा महत्व दिया जाता है. लेकिन जवानी में पेन्सन पा रहे पत्रकार जब तक एकजुट होकर अपने हक़ के लिए आवाज नहीं उठाएंगे तब तक हालत सुधर जाये इसकी कोई गारंटी नहीं है