Sunday, May 3, 2009

जूता-चप्पल (पड़ेगा)


जूता-चप्पल (पड़ेगा)


क्रान्ति का प्रतीक

बनेगा जूता-चप्पल
आजादी के समय अंग्रेजों से लोहा लेने वाले आजादी के परवानों ने मशाल का उपयोग कर क्रांति की शुरूआत की थी,तब से मशाल को क्रांति का प्रतीक माना जाता है। आजादी के 61 वर्ष बाद 21वीं सदी की और जा रहे भारत देश में वर्तमान मे जो हालात पैदा हुए हैं उससे ऐसा लग रहा है कि आने वाले कुछ सालों बाद जूते- चप्पलों को क्रांति का प्रतीक माना जाएगा। क्योकि नेताओं की सभा में चले जूते चप्पलों को नेताओं के लिए जनता की चेतावनी मान सकते हैं कि अभी समय है सुधर जाएं नहीं तो परिणाम भयंकर होगा? वर्तमान में देश के भीतर जिस तरह से अव्यवस्था ने पांव पसारे हैंं, लूटखसोट , भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। सरकारी नुमाइंदे तथा सभी कायदे कानून सिर्फ पूॅंजीपतियों की बपौती बनकर रह गई है और आम जनता तथा गरीबों की पूछ परख नही होने से आमजनता में काफी आक्रोश है इसके लिए नेताओं और राजनीति से जुड़े लोगों को जिम्मेदार माना जाता है। पिछले कुछ समय से देश में राजनीति से जुड़े बड़े पदासीन नेताओं पर जिस तरह जनता के द्वारा जूूते-चप्पल फेंके जा रहे हैं उसे आज जनता के इसी आक्रोश का नतीजा मान सकते हैं। जिन नेताओं पर अब तक जूते चप्पल फेंके गए हैं गौर करें तो जूता चप्पल फेंकने वाला उनके किसी ना किसी फैसले या छवि से आक्रोशित रहा है, जैसे गृहमंत्री पी.चिदंबरम पर जूता फेंकने वाला भले ही प्रेस कांफ्रेस में मौजूद एक पत्रकार (जनरैल सिंह)था लेकिन उसे गृहमंत्रालय के जारी आदेश पर सिख समाज के व्यक्ति का आक्रोश मान सकते हैं। उस पत्रकार के जूते ने वह काम कर दिया जो सिक्ख समाज द्वारा धरना-प्रदर्शन के बाद शायद ही संभव हो पाता। इस घटना के बाद मजबूरन सत्ताधारी पार्टी (यूपीए)को अपने दो बड़े नेताओं की लोकसभा की टिकट काटनी पड़ी। इस घटना के बाद बाद तो जैसे जूता-चप्पल ने क्रांति का चोला पहन लिया हो। एमपी में सांसद नवीन जिंदल की सभा में एक किसान द्वारा चप्पल उछाली गई। बताते हैं कि उस किसान ने सांसद की निष्क्रियता से उद्वेलित होकर चप्पल फेंकी थी। इसके बाद भाजपा के वेटिंग इन पीएम लालकृष्ण आडवानी की आमसभा में ,अभिनेता जीतेन्द्र की रैली में , फिर देश को चलाने वाले मुखिया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आमसभा में और ना जाने कहां-कहां जूता-चप्पल उछालने का दौर लगातार चल रहा है। मेरे ख्याल से जूता-चप्पल फेंकने की इस घटना को हल्केपन से लेना नासमझी होगी,क्योंकि भले ही इसे कु छ लोग पब्लिसिटी स्टंट मानकर चल रहे हों पर सच्चाई कुछ और ही है। यह कहीं ना कहीं आमजनता के मन की भड़ास और व्यवस्था से पीडि़त परेशान लोगों का आक्रोश है जो धीरे-धीरे भड़क ने लगा है। इस आक्र ोश का भड़कना लाजिमी भी है क्योंकि आमजनता हर बार नेताओं के हाथों ठगे जाते हैं हर पांच साल में एक बार वे उनकी दरबार में आते हैं मीठे-मीठे लुभावने वायदें करते हैें और हंसीन सपने दिखाकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं, इसके बाद पांच सालों तक अपना चेहरा तक जनता को नहीं दिखाते। आने वाले वर्षों में भी यदि करप्शन, अव्यवस्था, बेरोजगारी,भूखमरी और गरीबी का यही हाल रहा तो आगामी चुनाव में चलने वाले जूते-चप्पलों की संख्या में काफी इजाफा हो सकता है और इस बार अब तक सही निशाने पर नहीं पहुंचने वाला यह हथियार सीधे निशाने पर जाकर बैठेगा और क्रांति के इस नए हथियार से एक नए अध्याय का शुभारंभ होगा।

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