Monday, May 11, 2009

छग के पूरे जंगली क्षेत्र पर कब्जे की फिराक में नक्सली ?


छग के पूरे जंगली क्षेत्र पर


कब्जे की फिराक में नक्सली ?


नगरी सिहावा के शांत इलाके


में नक्सलियों की पहली धमक


अब छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या सिर्फ दंतेवाड़ा, बीजापुर ,मोहला मानपुर और सरगुजा तक ही सिमट कर नहीं रह गई है। नक्सली धीरे-धीरे अब राज्य के हर गांव और कस्बे तक अपनी छाप छोडऩे में सफल हो रहे हैं। ऐसे काम के लिए नक्सलियों ने धमतरी और रायपुर जिले के ऐसे गांवों को निशाना बनाया है जहां से जंगल नजदीक हैं या जो गांव जंगल के करीब है। यानि कहा जाए तो राज्य के पूरे जंगल पर नक्सली कब्जे की फिराक में हैं तो कोई थोथी बात नहीं होगी। नगरी के रिसगाव में हुई घटना इसकी ओर एक और कदम है। नगरी मार्ग पर कुछ दिनों पहले एक व्यापारी के साथ हूई लूटपाट की घटना ने क्षेत्र में नक्सलियों के पदचाप के संकेत दे दिए थे। लेकिन इतनी जल्दी इस क्षेत्र के लोगों को नक्सली अपना असली चेहरा दिखाएंगे यह किसी ने सोचा भी नहीं था। सुबह-सुबह जब नगरी और आसपास के गांव के लोगों ने हेलीकाप्टर की आवाज सुनी तो उन्हें ऐसा लगा कि कोई नेता तो नहीं आ रहा है। लेकिन कुछ ही देर में सारा माजरा उन्हें समझ में आ गया हमेशा शांत रहने वाले नगरी में एका एक पुलिस की कई वाहनें धड़धड़ती हुई पहुंची उसमें से एक वाहन पर खून से लथपथ जवानों पर जब लोगों की नजर पड़ी तो समझ गए कि जिसका डर था वही हुआ। नक्सलियों ने वहां से तीस किलोमीटर दूर रिसगांव की पहाडिय़ों पर नगरी और आसपास के घर के जवानों को हमेशा के लिए मौत की नींद सुलाकर ऐसा जख्म दे दिया जिसकी धमक क्षेत्र के लोगों कीे कानों में आने वाले कई सालों तक गूंजती रहेगी। सूत्रों की मानें तो धमतरी और रायपुर जिले के रिसगांव, दुगली, सीतानदी अभ्यारण्य,देवभोग, मैनपुर,गरियाबंद,के जंगलों में नक्सलियों की आवाजाही की सूचना लोगों को मिलती रही है लेकिन इतनी बड़ी घटना हो जाने से पूरे क्षेत्र में दहशत का माहौल है। मुख्यमंत्री रमन सिंह और गृहमंत्री ननकीराम कंवर द्वारा दो दिनों पहले ही दिए गए बयानों का नक्सलियों ने जिस अंदाज में जवाब दिया है वह उनके इरादे बताने के लिए काफी है। सरकार की ओर से यह बयान आया था कि अब बातचीत नहीं सीधी लड़ाई होगी। लेकिन सरकार की ओर से पहल कब होगी पता नहीं लेकिन नक्सलियों ने बीते सप्ताह में जिस तरह एक के बाद एक लगातार कई हिंसक वारदातों को अंजाम दिया है इससे एक बात तो साफ है कि वे जो चाहते हैं कर देते हैं। नक्सली हर बार अपने इरादों में सफल हो रहे हैं जबकि पुलिस हर बार असफल साबित हा रही है। क्या पुलिस के मुखबिर नक्सलियों के मुखबिर से कमजोर हैं या फिर पुलिस के मुखबिर भी नक्सलियों के लिए काम करने लगे हैं? पिछले कुछ दिनों से लगातार नक्सलियों द्वारा की जा रही वारदातों पर नजर डालें तो एक बात तो साफ है कि नक्सली जंगलों से लगे गांवों तक अपनी घुसपैठ मजबूत करने में लगे हैं ऐसा कर कहीं वे राजधानी को चारो ओर से घेरने की तैयारी में तो नहीं हैं?

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