Sunday, May 22, 2016

आईपीएल के ए पास हर हमर से दूर काबर हे यार.....

राजधानी रायपुर में आईपीएल का रोमांच चरम पर है। आईपीएल के दो मैचों की मेजबानी रायपुर को मिली है। पहला मैच 20 मई को खेला गया।
मैच के पहले सारी सिर्फ कुछ टिकिटें ही बचे होने का हल्ला मचा रहा लेकिन जब मैच हुआ तो स्टेडियम का लगभग 30 फीसदी हिस्सा खाली दिख रहा था।
ऐसे में फ्री पास मिलने आैर टिकिटों के वितरण को लेकर भी चर्चा चलती रहती है। दो ग्रामीण भी इसे लेकर चर्चा कर रहे हैं। उनके बीच हो रही बातचीत सोशल मीडिया तक पहुंच गई है। पहला बोलता है- अरे यार ते मेच देखेबर गे रेहे का। दूसरा तपाक से - मैच कोन से मैच ल यार।

पहला - अरे नवां रइपुर मे जेन किरकेट के मेच चलत हे तेकर बारे मे कहात हो। दूसरा माथे पर चिंता की लकीरें लाते हुए- अरे का बतावं यार, मेह सस्ता वाला टिकिट ल लेहूं कहिके सोचत रेहेव फेर टिकिट बेचइया मन मोला किहिन के सस्ता वाला सबो बेचा गेहे आेकर ले थोकिन महंंगा वाला हे। 
पहला पूछता है त आेला काबर नि ले यार। दूसरा बोलता हे - अरे यार लइका हर शउक धरे रिहिस तेकर सेती मेहर टिकिट लेबर जाए रेहेव फेर अतका घलो शउक नईहे के मांहगा टिकट ले डारों। अउ ता अउ पइसा घलो तो नइ रिहिस न यार टिकट लेबर। पहला बोलता है- त तेहर मेच नि दखे। 
दूसरा- कहां देखेंव यार। लइका अलग रिसागे आेकर कारन। तभी पहला पूछता है ते हर त अपन नेता करा नि जाए रते पास मांगे बर। दूसरा- अब ये पास काय हरे। 
पहला समझाते हुए अरे पास मने बड़े-बड़े मन ला अइसन कोनो कारयकरम के पास देथें जेकर से आेमन ल बिना पइसा दे उहां जायबर मिल जाथे। दूसरा- अच्छा, मने पास मिलही त महूं हर फोकट में भीतरी खुसर जाय रतेंव। पहला बोलता है हव यार, आजकाल त सबो झन पास के जुगाड़ म घूमत रथे। 
फेर हमर-तुंहर असन मन ला पास कहां ले मिलही। दूसरा बोलता है अरे यार त एक बात समझ नइ आए जेंकर तिर पइसा कौड़ी भरे परे हे आेमन ल अउ फोकट में पास देके काय जरूरत हे यार। 
तभी पहला बीच में टोकते हुए- हव यार पास त हमन ल देना चाही जेन मन टिकट नइ खरीद सकें। जेमन पइसा लेके टिकट खरीद सकथे आेमन ल फोकट में टिकट देके हमर मन के मजाक काबर उड़ावत होही यार एेमन। 
दूसरा तपाक से बोलता है- सही कहात हस यार। बल्कि अइसे करना चाही कि जेकर तिर पइसा नई हे आेमन ला पास देना चाही अउ जेकर तिर पइसा हे आेमन से पइसा लेके टिकट देना चाही।
एकर अलावा हमर असन मन ल त कारयकरम के समय बिना पइसा के खाये पिये बर घलो देना चाही। तभी पहले के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आती हैं वह कुछ सोचते हुए बोलता है - ठीक कहात हस यार, इही त बिडंबना हरे जेकर तिर पइसा हे आेला खरचा करेके जरूरत नई परे अउ जेकर तिर पइसा नइ हे आेला हर चीज पर पइसा खरचा करेबर परथे। 
अइसने में कहां ले समानता आही यार। मोला एक बात समझ म नइ आए कि ए पास हर हमर से दूर काबर हे यार....