Friday, May 29, 2009

कन्वर्जेस के युग में पहुंची हिंदी पत्रकारिता


कन्वर्जेस के युग
में पहुंची
हिंदी पत्रकारिता

तीस मई का दिन हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में उल्लेखनीय है क्योंकि इसी दिन वर्ष 1826 में कोलकाता से पहला हिंदी पत्र उदंत मार्तण्ड शुरू हुआ। हालांकि इससे बहुत पहले वर्ष 1780 में यहीं से जेम्स आगस्टस हिक्की ने बंगाल गजट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर शुरू कर अंग्रेजी पत्रकारिता की शुरुआत कर दी थी। इन 183 वर्षों में हिंदी पत्रकारिता में बड़े आमूल चूल परिवर्तन आए।
अंग्रेजी पत्रकारिता के बरक्स इसके कद और ताकत में व्यापक बढ़ोतरी हुई। कागज से शुरू हुई पत्रकारिता अब कन्वर्जेंस के युग में पहुंच गई है। कन्वर्जेंस के कारण आज खबर मोबाइल, रेडियो, इंटरनेट और टीवी पर कई रूपों में उपलब्ध है। सूचना प्रौद्यागिकी के इस युग में हिंदी पत्र डिजिटल रूपों में उपलब्ध है। वरिष्ठ पत्रकार और जनसंचार विशेषज्ञ प्रोफेसर कमल दीक्षित ने बताया कि पंडित युगल किशोर शुक्ल द्वारा शुरू किए गए उदंत मार्तण्ड के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो उस समय पत्रकारिता का उद्देश्य समाज सुधार, समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार और रूढि़यों का उन्मूलन था। उन्होंने बताया उस समय पत्रकारिता के सामाजिक सरोकार शीर्ष पर थे और व्यावसायिक प्रतिबद्धताएं इनमें बाधक नहीं थीं। युगल किशोर शुक्ल का उदंत मार्तण्ड 79 अंक निकलने पर चार दिसंबर 1827 को बंद हो गया। हालांकि उसके बाद हिंदी में बहुत सारे पत्र निकले। राजा राम मोहनराय ने हिंदी सहित तीन भाषाओं में 1829 में बंगदूत नामक पत्र शुरू किया। सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और माइक्रोसाफ्ट मोस्ट वैल्यूबल पर्सन से सम्मानित बालेन्दु दाधीच के अनुसार जो मौजूदा प्रवृत्ति है, उसके अनुसार हिंदी के अखबारों पर प्रासंगिक और तेज बने रहने का भारी दबाव है। ई पेपर उसी दिशा में एक अग्रगामी कदम है। यह अवसर भौगोलिक सीमाओं को पार करने और व्यावसायिक अवसरों के दोहन को लेकर है। प्रोफेसर दीक्षित के अनुसार हिंदी पत्रकारिता में मानवोचित मूल्यों को स्थान देने में पूर्व की अपेक्षा कमी आई है। 1950 से 55 के दशक तक जिस हिंदी पत्रकारिता को बाजार की सफलता के मानकों पर खरा नहीं माना जाता था, उसके प्रति विचारधारा परिवर्तित हुई है। उन्होंने बताया कि अस्सी के दशक के बाद से स्थिति यह हो गई कि अंग्रेजी से लेकर बड़ा से बड़ा भाषाई समूह हिंदी में अखबार शुरू करने में रुचि दिखाने लगा। हालांकि विकास के बड़े अवसर हैं, लेकिन हिंदी पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं। दाधीच कहते हैं कि हिंदी पत्रकारिता का इंटरनेट के क्षेत्र में जाने का मकसद अपने प्रभाव क्षेत्र में बढ़ोतरी करना होता है। मीडिया हाउस पर अब खबरों के व्यापार का एकाधिकार नहीं रह गया है। गूगल और याहू जैसी कई कंपनियां भी खबरों के प्रसार के प्रमुख स्रोत के रूप में काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रिंट मीडिया प्रसार संख्या पर आधारित है, ई पेपर भी अब इसमें शामिल किया जाने लगा है। बालेंदु दाधीच ने बताया कि हिंदी सहित अन्य भाषाओं के वेब पत्रों में बिजनेस माडल का अभाव है। विज्ञापनों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है, लेकिन जिस प्रकार विदेशों में प्रिंट से वेब में पत्रकारिता की प्रस्तुति बढ़ी है। वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी यही रूप स्वीकार होगा। प्रोफेसर दीक्षित ने बताया कि हिंदी पत्रकारिता ने एक समय अपना भाषाई समाज रचने में बहुत बड़ा योगदान दिया। दिनमान और धर्मयुग जैसे पत्रों ने हिंदी पाठक को उन विषयों पर सोचने और समझने का अवसर दिया, जिन पर केवल अंग्रेजी का एकाधिकार माना जाता था। अंग्रेजी में श्रेष्ठत्व के नाम पर दावा करने की कोई चीज नहीं है। हिंदी उस बराबरी पर पहुंच गई है। हालांकि परंपरा में अंग्रेजी पत्रकारिता हिंदी से आगे है लेकिन हिंदी पत्रकारिता ने भी लंबी दूरी तय की है।

(आभार एजेंसी)

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