Monday, May 25, 2009

अध्यापक के रूप में शुरु हुआ था डॉ.सिंह का सफर

अध्यापक के रूप में

शुरु हुआ था

डॉ.सिंह का सफर

आर्थिक सुधारों के जनक एवं देश को 'परमाणु वनवास से उबारने वाले कुशल प्रशासक मनमोहन सिंह लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री का दायित्व संभालने जा रहे हैं। एक मंजे हुए अर्थशास्त्री के रूप में भारत में ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी साख है तथा मौजूदा विश्व आर्थिक मंदी के दौर में विश्व नेता डॉ. सिंह की राय को तवज्जो देते हैं। लोकसभा चुनाव 2009 में मिली जीत के बाद वह जवाहरलाल नेहरु के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बन गए हैं, जिन्हें पांच वर्षों का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला है। उन्होंने 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्तमंत्री के रुप में भी कार्य किया है। वित्तमंत्री के रुप में उन्होंने भारत में आर्थिक सुधारों की शुरआत की। डॉ. सिंह का प्रिय कथन है, "उस विचार को हकीकत में आने से नहीं रोका जा सकता जिसका समय आ गया है"। इसी सोच के आधार पर उन्होंने मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले एक समाजवादी देश को खुली उदारवादी अर्थव्यवस्था की ओर मोड़ दिया। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने विदेशनीति को भी नई दिशा दी तथा अमेरिका का सहयोग हासिल कर देश को 30 वर्षों से कायम 'परमाणु वनवासÓ से बाहर निकाला। डॉ. सिंह को सही मायनों में एक विचारक और विद्वान के रुप में जयजयकार मिली है। अपनी कर्मठता और कार्य के प्रति अपने शैक्षणिक दृष्टिकोण के साथ-साथ स्पष्टवादिता और आडंबरविहीन आचरण के लिए जाने जाने वाले डॉ. सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गांव गाह में हुआ था। जो इस समय पाकिस्तान में है। उन्होंने वर्ष 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनके शैक्षणिक जीवन ने उन्हें पंजाब से कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय पहुंचाया। जहां उन्होंने वर्ष 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी में स्नातक डिग्री हासिल की। इसके पश्चात वर्ष 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल किया। डॉ. सिंह ने अपनी पुस्तक 'इंडियाज एक्सपोर्ट ट्रेन्डस एण्ड प्रोस्पेक्टस फॉर सेल्फ सस्टेन्ड ग्रोथÓ में भारत के आंतरिक व्यापार पर केन्द्रित नीति की प्रारंभिक समीक्षा की थी। यह पुस्तक इस संबंध में पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है। डॉ. सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वह पंजाब विश्वविद्यालय और बाद प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वह अंकटाड सचिवालय में सलाहकार भी रहे और 1987 तथा 1990 में जिनेवा में संयुक्त कमिशन में सचिव रहे। 1971 में डॉ. सिंह को वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार तथा 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष रहे। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डॉ. सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्तमंत्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना जाता है। डॉ. सिंह को उनके सार्वजनिक जीवन में प्रदान किए गए कई पुरस्कारों और सम्मानों में देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्म विभूषण, भारतीय विज्ञान कांग्रेस का 'जवाहरलाल नेहरु जन्म शताब्दी पुरस्कार, वित्तमंत्री के लिए 'एशिया मनी एवॉर्ड और 'यूरो मनी एवॉर्डÓ, क्रैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का 'एडम स्मिथ पुरस्कार और कैम्ब्रिज में सेंट जॉन्स कॉलेज में विशिष्ट कार्य के लिए 'रॉयटर्स पुरस्कार प्रमुख थे। डॉ. सिंह को जापानी निहोन कीजई शिमबन सहित अन्य कई संस्थाओं से भी सम्मान प्राप्त हो चुका है। डॉ. सिंह ने कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधत्व किया है। उन्होंने साइप्रस में आयोजित सरकार के राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक (1993) में और वर्ष 1993 में वियना में आयोजित मानवाधिकार पर विश्व सम्मेलन में भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया है। अपने राजनीतिक जीवन में डॉ. सिंह वर्ष 1991 से भारत के संसद और ऊपरी सदन (राज्यसभा) के सदस्य रहे हैं, जहां वह वर्ष 1998 और 2004 के दौरान विपक्ष के नेता थे। डॉ. सिंह की तीन पुत्रियां हैं।
डॉ. सिंह के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव इस प्रकार हैं-
1957 से 1965 चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक
1969-1971 दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रोफेसर
1976 दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में मानद प्रोफेसर
1982 से 1985 भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर
1985 से 1987 योजना आयोग के उपाध्यक्ष
1987 पद्मविभूषण से सम्मानित
1990 से 1991 भारतीय प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार
1991 नरसिम्हाराव सरकार में वित्तमंत्री
1991 असम से राज्यसभा के सदस्य
1995 दूसरी बार राज्यसभा के सदस्य
1996 दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफेसर
1999 दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए
2001 तीसरी बार राज्यसभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता
2004 भारत के प्रधानमंत्री एवं 2009 दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री

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