Monday, March 28, 2011

देश में 12 फीसदी बढ़ गए बाघ


लगभग नौ करोड़ रुपए के खर्च से वनविभाग के 4.76 लाख कर्मचारियों ने अनुमान लगाया है कि भारत में बाघों की संख्या पिछले चार साल में 1411 से बढ़कर 1706 हो गई है. इस तरह बाघों की संख्या में 295 की वृद्धि हुई है. ये आंकड़े दिल्ली में आयोजित बाघ संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में जारी किए गए हैं. पिछली बार बाघों की गणना 2006 में की गई थी और उसके बाद ताज़ा आंकड़े 2010 की गिनती के बाद आए हैं.इस संख्या में सुंदरबन में गिने गए 70 बाघ भी शामिल हैं जिन्हे 2006 में नहीं गिना गया था.

देश में इस साल बाघों की संख्या बढ़कर 1,706 हो गई है। अगर सुन्दरबन में मौजूद बाघों की संख्या को अलग कर दिया जाए तो इसकी संख्या में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सुन्दरबन में 70 बाघ हैं। बाघ गणना सूची के अनुसार गंगा के मैदानी भागों में बाघों की संख्या 353, मध्य व पूर्वी हिस्सों में 601,पश्चिमी भाग में 534, पूर्वोत्तर के पहाड़ी और ब्रह्मपुत्र के बाढ़ वाले इलाकों में 148 व सुन्दरवन में 70 बताई गई है। वर्ष 2006 की गणना में देशभर में बाघों की संख्या 1,411 थी जिसमें सुन्दरबन में मौजूद इनकी संख्या को शामिल नहीं किया गया था। देश में दो दशक पहले बाघों की संख्या 3,000 थी।


कुल संख्या से अगर सुन्दरबन में मौजूद बाघों की संख्या को छोड़ दिया जाय तो इस साल बाघों की संख्या 12 फीसदी बढ़कर 1,636 तक पहुंच गई है। वर्ष 2006 में यह आंकड़ा 1,411 था। सुन्दरबन में फिलहाल 70 बाघ हैं। एक अंतरसरकारी संगठन 'ग्लोबल टाइगर फोरम' (जीटीएफ) की मदद से सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। जीटीएफ के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) और विश्व बैंक का 'ग्लोबल टाइगर इनीशिएटीव'(जीआईटी) सदस्य हैं।

पिछले साल रूस के पीर्ट्सबर्ग में आयोजित सम्मेलन के बाद भारत में इसका आयोजन हो रहा है। इस दौरान 'ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम' (जीटीआरपी) को लागू करने सहित बाघों के संरक्षण की चुनौतियों, योजनाओं और उसकी प्राथमिकताओं पर चर्चा होगी। वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या दोगुना करने का लक्ष्य है।

महाराष्ट्र, उत्तराखंड, असम, कर्नाटक में वृद्धि

ये आंकड़े भारत के वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने पेश किए हैं. आंकड़ों को पेश करते हुए जयराम रमेश ने कहा, "भारत के तराई क्षेत्र और दक्षिण भारत में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी होना काफ़ी सकारात्मक संकेत है. हालांकि मध्य भारत और पूर्वोत्तर भारत के इलाकों में उपलब्ध क्षेत्र के मुकाबले वहाँ बाघों की संख्या काफ़ी कम है जो चिंता का विषय है.

Sunday, March 27, 2011

पांच साल पहले,पांच हजार की नौकरी करने वाला पांच साल बाद पांच अरब का मालिक

छत्तीसगढ़ में आना, खाना, कमाना और यहाँ के लोगों लूटकर ले जाना कोई नई बात नहीं है. राज्य बनने के बाद से यहाँ सिर्फ और सिर्फ ठगों का ही राज्य रहा है. पिछले दस साल के रिकार्ड को खंगाले तो पता चल जायेगा की जितने यहाँ के लोगों की भलाई में खर्च नहीं किया गया होगा उतना तो बाहर से आने वाले ठगों ने लूट लिया होगा. कभी चिटफंड कंपनी के नाम पर तो कभी फिनांस के नाम पर तो कभी दुगुना फायदा का लालच देकर. हर तरह से यहाँ की भोली-भली जनता को लूटा गया है. अभी हाल ही में लूट का एक नया तरीका सामने आया है. इसमें पहले स्कूल के माध्यम से फिर स्कूल के कुछ पैसों को मीडिया में इन्वेस्ट कर ठग ने ऐसा मायाजाल बुना कि राज्य का हर छोटा-बड़ा उसके चाल में फंसता चला गया. कभी भगवत कथा के नाम पर तो कभी कोई बड़ा आयोजन कर उस ठग ने प्रदेश के मुखिया को भी अपने दरवाजे पर लाता रहा. छत्तीसगढ़ में लगभग पांच-छह साल पहले आया राजेश शर्मा नाम ने कुछ इसी तरह प्रदेश भर के लोगो को ठग लिया. बताते है कि राजेश शर्मा ने एक टीचर के रूप में अपना काम शुरू किया था. फिर अचानक उसने डालफिन के नाम से एक स्कूल खोल लिया. पर एक स्कूल के बाद उनसे लगातार प्रदेश के हर बड़े कस्बों में अपना स्कूल खोलना प्रारंभ किया. स्कूल की संख्या बढाने के साथ ही उसने मीडिया में पैर जमाना चाहा. नेशनल लुक नाम से सांध्य दैनिक अखबार प्राम्भ किया. राजधानी में पत्रकारिता के उन तमाम नामो को उसमे शामिल किया जो राजधानी रायपुर में चल चुका था.  एक साल बाद ही उसे बंद कर ऑफिस कापी के रूप में चलता रहा. लेकिन  कम होते प्रभाव को देख उसने एक बार फिर अपने उसी अखबार को नए रूप में जिन्दा करने की तैयारी की और इस बार पिछली बार से भी ज्यादा ताकत के साथ. इस बार उस राजेश शर्मा ने रायपुर भास्कर की सबसे मजबूत टीम को तोड़कर वह कई सालों से अपनी सेवाए दे रहे पत्रकारों को अपने नेशनल लुक में शामिल किया. जिसने जितना चाहा उसे उतना पैसा दिया गया. इस बार मानो उसने तय कर लिया रहा हो कि जितना वो पेमेंट में खर्च करेगा उससे ज्यादा वो उनका दुरूपयोग कर कम लेगा. और हुआ भी यही, २०१० तक उसके एक भी स्कूल कि राज्य से मान्यता नहीं थी लेकिन मीडिया का दुरुपयोग कर उसने सिर्फ एक साल में ही ३० स्कूलों कि मान्यता हासिल कर ली. उसने स्कूल कि आड़ में एक मुस्त रकम लेने कि जो योजना बनाई उसी सी उसने २०० से ३०० करोड़ बना लिया. इसके अलावा बाज़ार से भी करोडो उठाये. बताते है कि  ये इसलिए सामने नहीं आ पा रहा है क्योंकि उसने कई लोगों कि ब्लैक मनी को वाईट करने का झांसा देकर लिया था. यदि कोई शिकायत लेकर गया तो पहले उसे उसका हिसाब देना पड़ जायेगा. राजेश शर्मा अब फरार हो गया है. स्कूल में पड़ने वाले बच्चों के भविष्य का भगवान ही मालिक है. मीडिया में काम करने वाले तो नौकरी खोज रहे है लेकिन दुःख तो इस बात का हो रहा है कि मीडिया के नामी लोगों को ठग कर गायब हो जाने वाला अब तक उतना प्रचारित नहीं हो पाया है जितना उसे करना चाहिए था. मीडिया के वे लोग चाहते तो एक हफ्ते के  भीतर देश के किसी भी कोने से खोज निकलते पर किसी भी पत्रकार ने ऐसा नहीं किया. वास्तविकता तो यह है कि सबसे मजबूत माने जाने वाले स्तम्भ आज सबसे कमजोर हो चुका है. दबे कुचले लोगों कि आवाज़ होने का दिखावा करने वाले खुद कितने दबे कुचले है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोई उनसे गद्दारी कर गया और वे चुप बैठे रह गए. जो लोग अपने लिए आवाज़ नहीं उठा सकते वे किसी दुसरे के लिए कैसे आवाज़ उठाने का दंभ भरते है. या तो वे अँधेरे में है या फिर उन्हें उजाला पसंद ही नहीं है. खैर अब वापस टापिक पर आते है   पांच साल पहले,पांच हजार की नौकरी करने वाला पांच साल बाद पांच अरब का मालिक कैसे बन गया. इसके लिए उसने वो सब किया जो किसी को भी आसानी से आकर्षित करने के लिए काफी था. हर छोटा कार्यक्रम बड़े और महंगे होटल में करवा कर उसने अपने आप को बहुत ही कम समय में इतना हाई प्रोफाइल बना लिया जिसके लिए लोगों को सालों लग जाते है. मीडिया का दुरुपयोग कैसे कर सकते है ये एक मिसाल है. राजेश शर्मा नाम का व्यक्ति हर वो काम कर लेना चाहता था जिसमे उसे आसानी से पैसा मिल जाए. फिल्म इंडस्ट्री में भी उनसे पैसा लगाया. भोजपुरी हीरो रविकिसन को लेकर फिल्म बना रहा था. एक फिल्म महतारी बना भी चुका है. बताते है कि उसके कई कलाकारों को आज तक पैसा ही नहीं मिला है. जो चेक मिला था वह बौंसा हो गया. धोखा देने के वो हर हथकंडे उसने अपनाये जो एक ठग अपना सकता है. जो पुलिस कभी उसे इज्जत देकर गुजर जाती थी आज वो यहाँ वहां उसकी तलाश में भटक रही है. आज राजेश शर्मा के नाम पर इनाम भी घोषित हो चुका है. पर कई अनसुलझे सवाल इसके पीछे छुपे है जो कही पहेली न बन जाए. ............

Thursday, March 10, 2011

इंडियन बैंकों में भी ब्लैक मनी?


इंडियन बैंकों में भी ब्लैक मनी?
यह जानकार हैरानी होगी कि इंडियन बैंकों में ऐसे अरबों रुपये पड़े हैं जिन पर किसी ने दावा नहीं कियाहै। ये कई सालों से बिना किसी दावे के बैंकों में जमाहैं। एक आरटीआई के जवाब में इसका खुलासा हुआ है। आरटीआई एक्टिविस्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल ने इस संबंध में आरटीआई अर्जी डाली थी जिसके जवाब में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बताया कि भारतीय बैंकों में 13 अरब से ज्यादा ऐसे रुपये हैं जिन पर किसी ने दावा नहीं किया और ये 10 साल पुरानेहैं। 31 दिसंबर 2009 को बैंकों में इस तरह के 13,60, 31,59,646.89 रुपये अनक्लेम्ड हैं। इसमेंफॉरेन बैंकों में 473167698 रुपये और दूसरे प्राइवेट बैंकों में 150323106 रुपये हैं। बाकी के पब्लिकसेक्टर के बैंकों में हैं। आवेदन के जवाब में कहा गया कि ऐसी कोई स्कीम नहीं है जिसके तहत बैंकोंमें पड़ी ऐसी रकम को जिस पर कोई दावा न करें एक निश्चित समय के बाद सरकारी अकाउंट मेंट्रांसफर कर दिया जाए। 
आरबीआई के मुताबिक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में 1047223 अकाउंट में 881584887 रुपये स्टेटबैंक ऑफ बीकानेर ऐंड जयपुर में 75261 अकाउंट में 144361403 रुपये स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद में86311 अकाउंट में 85966644 रुपये स्टेट बैंक ऑफ इंदौर में 40114 अकाउंट में 88583351 रुपये ,स्टेट बैंक ऑफ मैसूर में 122628 अकाउंट में 300340111 रुपये स्टेट बैंक ऑफ पटियाला में 532अकाउंट में 3513378 रुपये एचडीएफसी बैंक में 2500 अकाउंट में 18994831 रुपये ,आईसीआईसीआई बैंक में 90094 अकाउंट में 281925887 रुपये पड़े हैं जिन पर 10 सालों से किसी नेदावा नहीं किया है।