Saturday, May 2, 2009

सरकार वही जो सीबीआई का सदुपयोग करना जाने...

सरकार वही जो

सीबीआई का

सदुपयोग

करना जाने...


कौन कहता है कि मनमोहन सिंह कमजोर प्रधानमंत्री हैं। जाहिर है कि विपक्ष के नेता उन्हें कमजोर कहते हैं। लेकिन असलियत यही है कि मनमोहन सिंह कहीं से भी कमजोर प्रधानमंत्री नहीं हैं बल्कि यह कहा जाय कि वे भाजपा नीत एनडीए सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मुकाबले ज्यादा मजबूत प्रधानमंत्री निकले । तभी तो उन्होंने पांच साल की सरकार में उन तमाम नेताओं को तथा कुछ अन्य को भी सीबीआई के जरिये वह राहत दिलाने की कोशिश कर ली जो अपनी सरकार के समय भाजपा चाहकर भी नहीं कर सकी। लोकसभा चुनाव के परिणाम आने पर जिन-जिन दलों के सहयोग की जरूरत पड़ सकती है उनके नेताओं को सीबीआई के जरिये सरकार की मेहरबानी का अंदाज हो रहा हैं। बिहार में लालू प्रसाद यादव भले ही अल्पसंख्यक वोटों पर प्रभाव डालने की गरज से कांग्रेस पर हवाई फायर कर रहे हैं लेकिन मनमोहन की सरकार में मंत्री रहते हुए लालू प्रसाद यादव को सीबीआई की ओर से जितना सहारा मिला है वह किसी और की सरकार के रहते लालू अपेक्षित ही नहीं कर सकते । इसी तरह मुलायम सिंह यादव उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की खिलाफ आग उगल रहे हैं लेकिन उनके मामलों में भी स्थिति यही है कि जब भी कांग्रेस को उनके समर्थन की जरूरत होगी वे दौड़े चले आयेंगे। सरकार की अप्रत्यक्ष मेहरबानी का दायरा यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि 16 मई को आने वाले परिणाम की कुछ भनक शायद पहले ही लग गई है इसलिए ताज कारीडोर मामले में उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री तथा बसपा सुप्रीमो मायावती पर भी कृपा हो गई है। ताज कारीडोर तथा आय से अधिक संपत्ति जैसे मामलों में सीबीआई का नजरिया माया के प्रति मुलायम कैसे हो गया, इसके राजनीतिक कारण तलाशने वाले यदि तलाश सकते हों तो अभी से तलाश लें। माया को राहत पहुंचाने की कोशिशों के पीछे असल वजह क्या है, यह तो कोई भी प्रमाणित रूप से नहीं बता सकता लेकिन राजनीति के गलियारों में अंदाज लगाया जा रहा है कि यदि 16 तारीख के बाद माया की जरूरत पड़ी तो उनके समर्थन का भी इंतजाम कर लिया गया है। बीते पांच वर्षों में यूपीए सरकार के दौरान सीबीआई के राजनीति करण के ढेरों आरोप लगे हैं और कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर, बोफोर्स मामले के आरोपी क्वात्रोच्चि, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, रेलमंत्री लालूप्रसाद यादव तथा उनकी पत्नी रावड़ी देवी के मामलों में सीबीआई का नजरिया जिस रूप में सामने आया है उससे इन आरोपों को बल मिला है।यूपीए सरकार ने हमेशा यही दलील दी है कि सीबीआई पर उसने कोई दबाव नहीं बनाया लेकिन सरकार के सहयोगियों तथा संभावित सहयोगियों को जिस तरह राहत मिलती रही है उसके संदर्भ में सरकार की दलील को कौन दिल से कबूल कर पायेगा? राजनीति में अब नैतिकता नहीं बल्कि वह नीति अहम है जिसके तहत राज किया जाये तो मनमोहन सिंह को कमजोर कहने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि राज करने की नीति के मामले में मनमोहन सिंह कहीं से भी कमजोर नहीं हैं। अब यदि कांग्रेस और उसके गठबंधन को सत्ता में आने लायक सीटें नहीं मिलती हैं तब भी कांग्रेस को ऐसे सहयोगी मिल सकते हैं जिन्हें उम्मीद हो कि आड़े वक्त में मनमोहन सिंह की सरकार सीबीआई का सदुपयोग करके यथासंभव राहत दिलवा सकती है।



















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