Thursday, May 14, 2009

ये कैसी संवेदना ?


ये कैसी संवेदना ?
विस्फोट के बाद
घटनास्थल पहुंचे
पूर्व और वर्तमान गृहमंत्री
की हंसी ठिठोली
क्या आज नेता सिर्फ बयानबाजी करने और समाचार पत्रों तथा टीवी चैनलों में सिर्फ अपना चेहरा और नाम छपाने और दिखाने के लिए रह गए हैं ? उन्हें किसी की भावना और दुख का जरा भी ख्याल नहीं है? 10 मई को छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के नगरी सिहावा के रिसगांव में नक्सलियों ने ब्लास्ट और फायरिंग से 13 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। कई घरों का चिराग एक पल में ही बुझ गया। कई परिवारों का सहारा क्षणभर में हमेशा के लिए छीन गया। इस घटना पर राज्य के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने राजनीतिक रुप देने की कोशिश की और बयान जारी किया कि पांच सदस्यीय टीम घटनास्थल पर जाकर जांच करेगी। इस घटना के समय अपने गृहग्राम में बैठे गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के कहने के बाद रायपुर आना गंवारा समझा और दूसरे दिन वे घटनास्थल के लिए रवाना हुए। उनके साथ कांग्रेस के पूर्व गृहमंत्री नंदकुमार पटेल,नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, विधायक धमतरी गुरमुखसिंह होरा,विधायक सिहावा अंबिका मरकाम आदि के साथ दर्जनों ग्रामीण तथा सैकड़ों पुलिस के अधिकारी और जवान भी घटनास्थल पहुंचे। प्रदेश के गृहमंत्री का घटनास्थल पर पहुंचने को लेकर पुलिस महकमें के जवानों और अधिकारियों के हौसले बढ़े हुए नजर आ रहे थे लेकिन जिस जगह पर विस्फोट हुआ जहां पर जमीन के भीतर आधी धंसी हुई चारपहिया वाहन खड़ी हुई थी उस स्थान पर ना जाने पूर्व गृहमंत्री और वर्तमान गृहमंत्री को किस बात पर इतनी जोर से हंसी आ गई कि वे एक दूसरे को ताली भी दे बैठे। उस समय वहां मौजूद उनके साथ गया हर वो शख्स हंस रहा था जिसके घर का कोई भी व्यक्ति देश सेवा के लिए शहीद नहीं हुआ। ऐसी जगह पर ठहाके लगाते समय उन्हें उन लोगों का जरा भी ख्याल नहीं आया जिनके घरों में मातम छाया हुआ है जो जवान उनके साथ उनकी सुरक्षा के लिए घटनास्थल पर डटे हुए थे। इस हंसी से वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों और पुलिस अधिकारियों पर क्या बीती होगी वे ही बता सकते हैं। उस हंसी पर उनके मन में क्या सवाल उठे होंगे वे ही जानें क्या इससे उनके मनोबल पर प्रभाव नही पड़ा होगा ? जहां पर चार दिनों पहले 13 जवानों की मौत हुई वहां गोलियों की दनदनाहट गूंजती रही ऐसी जगह पर इतने जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं की हंसी-ठिठोली का क्या औचित्य था ? क्या नेताओं में संवेदना इतनी खत्म हो गई है कि वे ऐसे स्थान पर हंसे जहां प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या ने दो दिनों पहले मौत का नंगा नाच खेला था? जब घटनास्थल पर वे इस तरह दिखे तो वे अपने मंत्रालय के एसी रुम में अपनी जिम्मेदारी के प्रति कितने गंभीर होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

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