Sunday, August 23, 2009

Friday, August 14, 2009

आजादी के 62 साल बाद देश मे हर चीज नकली


आजादी के 62 साल बाद
देश मे हर चीज नकली

ये कैसा विकास है? ये कैसी तरक्की है? किस रास्ते पर जा रहा है हमारा प्यारा भारत देश? कौन है इसके लिए जिम्मेदार? कौन रोकेगा इसे? ये और इस तरह के तमाम सवाल देश के उन सभी लोगों से है जो किसी न किसी माध्यम से इस देश के साथ जुड़े हैं ,अर्थात् ये सवाल देश के सवा अरब लोगों से जिनमें देश को चलाने वाले नेता, देश का भविष्य संवारने वाले शिक्षक, देश के स्वास्थ्य की चिंता करने वाले डॉक्टर, देश को नया स्वरूप देने वाले इंजीनियर,देश का पेट भरने वाले किसान और देश के भविष्य की योजना बनाने वाले नौकरशाह सभी शामिल हैं। आजादी के इतने सालों में लिखने के लिए तो बहुत से विषय हैं लेकिन हम यहां पर देश में पांव पसार रहे नकली चीजों के कारोबार पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाह रहे हैं।अनुभव करें तो आजाद भारत की उम्र जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे देश अंदर से खोखला होता जा रहा है। कभी शुद्धता और सौम्यता की मिसाल रहे इस देश की हर एक चीज आज नकली और मिलावटी हो गई है। देश के बाजार में नकली और मिलावटी चीजों की इतनी भरमार हो गई है कि आम आदमी का जीना दूभर हो गया है। नकली चीजें बनाने और मिलावट का कारोबार करने वाले चंद लोगोंं ने करोड़ों लोंगों की जिंदगी खतरे में डाल दी है। अपने आस पास नजर डालें तो खाने-पीने की चीजों से लेकर दैनिक उपयोग की प्रत्येक चीजें नकली हो गई है यहां तक की इन चीजों को खरीदने के लिए उपयोग किया जाने वाला नोट तक नकली बन चुका है। पाकिस्तान और पड़ोसी मुल्क के कुछ कारोबारियों ने भारत के भीतर इतनी अधिक मात्रा में जाली नोटों का जाल फैला दिया है कि वो देश की आर्थिक स्थिति को खोखला करने में महत्वपूर्ण हथियार साबित हो रहा है। नकली सामान,नकली खाद्य पदार्थ और नकली नोट देश के कोने-कोने में पहुंच चुके हैं। नकली समान से लोगों को आर्थिक क्षति,नकली खाद्य पदार्थ से लोगों को शारीरिक क्षति और नकली नोटों से देश को आर्थिक क्षति पहुंच रही है। क्या हमारे पुर्वजों ने देश की आजादी की मांग इन्हीं सब चीजों के लिए की थी ताकि विकास और तरक्की के नाम पर हमें नकली चीेजों का सामना करना पड़े। यदि नकली नोटों, दवाइयों, खाद्य पदार्थों एवं जरूरत की अन्य सामानों का कारोबार देश के भीतर इसी तेजी से फैलता रहा तो देश अंदर से इतना खोखला हो जाएगा कि एक दिन पूरा भारत नकली सामानों से पट जाएगा और नकली नोटों के कारण देश आर्थिक रुप से कमजोर हो जाएगा। आज हम अपने देश के भीतर अपने ही कुछ लोगों की कार गुजारियों के गुलाम बनकर रह गए हैं, हमारी जिंदगी चंद-लालची लोगों के हाथों में है जो मिलावट कर रातों-रात मालामाल हो रहे हैं। यदि हमारा देश आजाद है? देश में लोकतंत्र है? देश में कानून व्यवस्था है? तो देश की छाती पर बैठकर मूंग दलने वाले अर्थात देश के भीतर बैठकर देश भर में तमाम नकली चीजें फैलाने वाले लोगों पर सरकार इतनी नरम क्यों है? हाथ में आने के बाद भी हमारी पुलिस ऐसे लोगों के आकाओं तक क्यों नहीं पहुंच पाती? सरकार को चाहिए कि नकली चीजों का कारोबार करने वाले ऐसे लोगों को देशद्रोही करार देकर इनके खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान रखना चाहिए जिससे इस तरह देश के भीतर जहर घोलने वाले दूसरे लोगों के लिए यह एक सबक हो।
क्या-क्या नकली-
नोट- 100, 500, 1000 के नकली नोटों का जाल
खाद्य पदार्थ- तेल, घी, दूध, मक्खन, खोवा, आइसक्रीम, बिस्किट, चॉकलेट।
कई प्रकार की दवाईयां
आटोमोबाइल में टू-व्हीलर,फोर व्हीलर के तमाम नकली पार्ट्स
इलेक्ट्रीकल्स, इलेक्ट्रानिक्स की तमाम चीजों के नकली माल बाजार में उपलब्ध
ब्रांडेड कंपनियों के नकली कपड़े
विभिन्न यूनिवर्सिटी/ कालेजों के नकली मार्कशीट
टू-व्हीलर/ फोर व्हीलर के ड्राइविंग लायसेंस एवं कागजात
चेहरे पर लगाने वाले क्रीम, पाउडर, हेयर आयल इत्यादि।
क्या हानियां-
नकली चीजें खाने से जानलेवा बीमारियों का खतरा
इनसे आज मनुष्य की औसत उम्र में कमी
विकास में बाधक, विनाश में सहायक।
ऐसे हो बचाव-
सरकार को चाहिए कि वर्तमान में उपलब्ध तमाम नकली पदार्थों को मापने और जांचने परखने का मानक तैयार कर इसे सीधे आम जनता तक पहुंजाया जाना चाहिए जिससे जनता पहचान सके कि कौन सी चीज नकली है और कौन सी असली। अभी तक सरकार नकली नोटों की पहचान के लिए ही जनजागरण अभियान चला रही है। सरकार को ऐसा ही जनजागरण सभी चीजों के लिए चलाया जाना चाहिए।

Thursday, August 13, 2009

पैसों के पैसा बनाने का खेल




रायपुर में खुलेआम हो रही है


सिक्कों की कालाबाजारी


सिक्कों की कालाबाजारी राजधानी सहित जिले के कुछ हिस्सों में जोरों पर है। शहर के नामी इलाकों में कुछ ऐसे लोग हैं जो कमीशन पर सिक्कों का व्यवसाय कर रहे हैं। पैसे से पैसा बनाने के इस खेल के बीच ऐसे लोग तो लाल हो रहे हैं लेकिन इसका दुष्परिणाम आम लोगों और छोटे व्यापारियों की भुगतना पड़ रहा है। छोटे व्यापारी भी बैंकों से सिक्के नहीं मिलने के कारण ऐसे लोगों से कमीशन में सिक्के लेने को मजबूर हैं। इसी मजबूरी के कारण वे अपनी थोड़ी-बहुत कमाई चिल्हर की खरीदी में लुटा देते हैं। बाजार में हालात ये हंै कि अब एक दो रुपए के सिक्के तो दूर पांच के सिक्कों की भी शार्टेज हो गई है। जानकारों की मानें तो आरबीआई द्वारा जारी किए गए सिक्के की क्वालिटी काफी बेहतर होती है जिसका उपयोग कुछ लोगों द्वारा गलाकर बेचने में किया जाता है। बताते हैं कि इससे काफी बढिय़ा क्वालिटी की आर्टिफिशियल ज्वेलरी बनाई जाती है। जिसकी अच्छी कीमत उन्हें मिल जाती है एक विशेष वर्ग सिर्फ इसी काम में लगा हुआ है। इसके अलावा सिक्के खपाने वाला एक गिरोह जरुरत मंदों को 10 से 15 प्रतिशत कमीशन पर सिक्के उपलब्ध करवाता है। सूत्र बताते हैं कि ऐसे लोगों के पास बैकों से मिले सौ सिक्कों की पाउच आसानी से मिल जाती है,इसके लिए सिर्फ उन्हें उसके एवज में ज्यादा रुपए देने होते हैं। गोलबाजार और मौदहापारा थाना क्षेत्र में यह व्यापार खुलेआम संचालित है। कुछ व्यापारियों ने बताया कि एक रुपए के सिक्के के लिए उन्हें ज्यादा पैसे देने होते हैं जबकि पांच रुपए के सिक्के एक रुपए के सिक्के की तुलना में कम कमीशन पर उपलब्ध हो जाते हैं। बैंकों की मानें तो उनके पास आने वाले सिक्के चेम्बर आफ कामर्स के माध्यम से व्यापारियों तक पहुंचते हैं और किस व्यापारी को कितने सिक्के चेम्बर द्वारा दिए गए हैं इसकी लिस्टिंग बैंक के पास जमा की जाती है। लेकिन छोटे व्यापारियों को जिन्हें चेम्बर से सिक्के नहीं मिल पाते उन्हें बैंक से सिक्के देने का प्रावधान है पर छोटे व्यापारियों की मानें तो बैंकों द्वारा उन्हें सिक्के नहीं मिल पाते और ना ही उन्हें सिक्के वाली मशीन से सिक्के उपलब्ध हो पाते हैं। जिससे मजबूरन ऐसे लोगों से ज्यादा दाम में उन्हें व्यावसायिक उपयोग के लिए सिक्के खरीदने पड़ते हैं।


एक नजर कमीशन पर
पुराने सिक्के- 5 से 8 प्रतिशत
नए सिक्के - 10 से 12 प्रतिशत
एक रुपए - सबसे महंगा
दो रुपए -सामान्य
पांच रुपए - कम प्रतिशत पर उपलब्ध


चेम्बर में शिकायत करें- श्रीचंद

चेम्बर आफ कामर्स के अध्यक्ष श्रीचंद सुंदरानी ने कहा कि व्यापारियों को नियमत: सिक्के प्रदान किए जाते हैं लेकिन इस तरह का काम हो रहा है तो गलत है। शहर के किसी भी व्यापारी द्वारा इसकी शिकायत चेम्बर के पास की जाएगी तो निश्चित तौर पर ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।


आवश्यक्ता से अधिक सिक्के नहीं- राव


एसबीआई के उपप्रबंधक रोकड़ चिन्नाराव के मुताबिक सिक्के का आबंटन चेम्बर के माध्यम से व्यापारियों को किया जाता है और आरबीआई के दिशा निर्देश के मुताबिक किसी भी एक व्यापारी को आवश्यक्ता से अधिक सिक्के नहीं दिए जाते क्योकि इससे सिक्के की कालाबाजारी हो सकती है। छोटे व्यापारियों को भी बैकों के माध्यम से सिक्के दिए जाते हैं।


शिकायत पर होगी कार्रवाई- अमित कुमार

एसपी रायपुर अमित कुमार का कहना है कि यदि इस तरह के किसी मामले की शिकायत पुलिस के पास आती है तो उस पर जरुर कार्रवाई की जाएगी।

Wednesday, July 29, 2009

पैसों के लिए कुछ भी करेगा...

पैसों के लिए कुछ भी करेगा...


रियालिटी शो सच का सामना
देखकर ही पस्त हुए कई नामचीन

स्टार टीवी द्वारा प्रसारित किया जाने वाला रियालिटी शो सच का सामना जितनी तेजी से प्रचारित हो रहा है उतनी ही तेजी से उसका विरोध भी शुरु हुआ है। इस शो में पूछे जाने वाले प्रश्नों के एक-एक जवाब के साथ आप अपनों के दिलों से दूर और पैसों के नजदीक आते जाएंगे। अभी हाल में सच का सामना करने पहुंचे पूर्व क्रि केटर और वर्तमान के एक्टर विनोद कांबली ने मात्र दस लाख तक पहुंचने के लिए एक ऐसी कड़वी बात कह डाली जिसने उसे अपने सबसे अजीज और करीबी माने जाने वाले दोस्त तथा दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के दिल में खटास भर दी। मात्र दस लाख के लिए उसने अपने बचपन की दोस्ती और सबसे अनमोल रिश्ता कुर्बान कर दिया। एकमात्र कांबली ही इसका उदाहरण नहीं है बल्कि जो भी अभी तक उस शो में आया है उन पर ऐसे सवाल दागे गए जिनके जवाब उनके रिश्तों की डोर को कमजोर करती चली गई। इस मंच पर आने वाला प्रतिभागी अपने सिर पर कफन बांध कर आता है. क्यों कि अपनी पत्नी, बच्चों,भाईयों और माता-पिता के सामने बैठकर उसे जो जबाव देने हैं वो वहां बैठे किसी भी रिश्ते को खत्म करने के लिए काफी है। कार्यक्रम को देखने और समझने से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि तेजी से विकास की ओर बढ़ रही पृथ्वी के भारत देश में भी कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें पैसों के आगे अपने अनमोल रिश्ते-नातों की कोई परवाह नहीं है। यानि वे सच का सामना करने यह उद्देश्य लेकर पहुंचे हों कि पैसों के लिए तो कुछ भी करेगा। यह बात तो स्टार चैनल वालों को भी कबूलनी होगी कि इस कार्यक्रम के प्रसारित होने के बाद चैनल की टीआरपी में काफी इजाफा हुआ है। क्योंकि इस कार्यक्रम में आने वाले प्रतिभागी से ऐसे सवाल किए जाते हैं जो देखने और सुनने में तो काफी अच्छा लगते है क्योंकि आज हर इंसान को दूसरों के बारे में ऐसी बातें जानने में काफी रूचि होती है जो दूसरों की निजी जिंदगी को प्रभावित करती है। लेकिन क्या किसी के जीवन से जुड़ी तमाम बातों को करोड़ों लोगों के सामने बताकर टीवी चैनलों द्वारा पैसे कमाना सही है? क्या अपने जीवनभर की सच्चाई और कमजोर रिश्तों को मात्र चंद रुपयों की खातिर कैमरे के सामने कहना सही है। सच कड़वा होता है सही है लेकिन इतना कड़वा सच भी किस काम का जिससे बसी बसाई गृह्स्थी,दोस्त-यार,और तमाम रिश्ते तलवार की नोक पर रख दिए जाएं?

Sunday, July 26, 2009

राज्य में अब डीजी नक्सल आपरेशन ?

राज्य में अब डीजी नक्सल आपरेशन ?

नक्सल समस्या से निपटने बन रही रणनीति

जेल और होमगार्ड को एक करने की कवायद

राज्य की नक्सल समस्या को ध्यान में रखते हुए अब जल्द ही डीजी नक्सल का पद सृजित किया जाएगा। इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर कवायद शुरु हो गई है। बढ़ती नक्सल समस्या पर लगाम कसने और नक्सल मामले से जुड़ी पुलिसिंग की कार्यप्रणाली की कमान अलग करने के लिए इसे राज्य सरकार की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। ज्ञात हो कि मदनवाड़ा घटना के दो दिन बाद ही नक्सल आपरेशन की कमान एडीजी रामनिवास को दी गई थी। इसके पूर्व नक्सल आपरेशन की कमान आईजी स्तर के अधिकारी ही संभाला करते थे। सूत्रों के मुताबिक नक्सल मामलों पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है इसे देखते हुए कुछ दिनों पहले ही गृह विभाग ने एसपी नक्सल आपरेशन का पद सृजित किया है जिसमें एएसपी स्तर के अधिकारियों की पदस्थापना की गई है। पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ रही नक्सली घटनाओं और वर्तमान में मदनवाड़ा घटना के बाद विपक्षी पार्टी कांग्रेस द्वारा विधानसभा सत्र के दौरान सदन के भीतर और बाहर किए गए हंगामे के बाद से राज्य सरकार कुछ दबाव में है। मदनवाड़ा घटना के लिए कांग्रेसी नेताओं ने डीजीपी की भूमिका पर भी सवाल उठाए थे। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए राज्य के गृह विभाग ने इस विकराल समस्या से निपटने के लिए एक नया पद सृजित करने का सुझाव सरकार को दिया है,जिसे डीजी नक्सल आपरेशन नाम दिया जाएगा। इस पद का कार्यक्षेत्र भी व्यापक होगा। बताते हैं कि इस पद के लिए राज्य के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के नामों की भी चर्चा है जिसमें पूर्व में डीजीपी पद की दौड़ में सबसे आगे रहे एसके पासवान का नाम प्रमुख है। सूत्रों के मुताबिक डीजी नक्सल के लिए राजीव माथुर और प्रवीर महेन्दु के नामों की भी चर्चा है । यदि डीजी नक्सल आपरेशन को सरकार की हरी झंडी मिल जाती है तो माना जा रहा है कि एसके पासवान ही डीजी नक्सल आपरेशन की कमान संभालेंगे। वर्तमान में वे अभी डीजी जेल हैं। सूत्रों का कहना है कि श्री पासवान को डीजी नक्सल बनाए जाने के बाद पूर्व की भांति ही जेल और होमगार्ड की कमान एक ही डीजी के पास होगा। ज्ञात हो कि वर्तमान में अनिल नवानी डीजी होमगार्ड हैं जो डीजी नक्सल पद लागू हो जाने के बाद जेल की कमान भी संभालेंगे। माना जा रहा है कि इस पद के सृजन से नक्सली क्षेत्र में काम कर रहे पुलिस के जवानों को एक बेहतर नेतृत्व प्राप्त होगा। इससे नक्सली क्षेत्र में काम कर रहे जवानों को होने वाली परेशानियों का निपटारा जल्द हो जाएगा साथ ही उन्हें उचित सुविधाएं सही समय पर उपलब्ध हो जाएगी, साथ ही सामान्य पुलिसिंग की कार्यप्रणाली से उन्हें अलग काम करने का मौका मिलेगा। जिससे निश्चित ही बेहतर परिणाम सामने आएंगे।

राज्य में अब डीजी नक्सल आपरेशन ?


राज्य में अब
डीजी नक्सल
आपरेशन ?

Tuesday, July 21, 2009

रमन के लड़के का हो गया सलेक्शन

रमन के लड़के

का हो गया

सलेक्शन

परीक्षा दिए बिना ही आया सेकेंड रैंक

Wednesday, July 15, 2009

...डूबने से बचेगा कैसे ?


...डूबने से बचेगा कैसे ?


राजधानी रायपुर में मात्र एक दिन की जोरदार बारिश ने ऐसा कहर बरपाया कि आम जनता से लेकर प्रशासन का हर जिम्मेदार अफसर आंहे भरता नजर आया। शहर की सबसे व्यस्त एवं प्रमुख सडकों का ये हाल था जैसे किसी गांव खेड़े की सड़कों का होता है। शहर की सभी सड़कें तालाबों में बदल गई थी। इन सड़कों से गुजरने वाले लोगों की वाहनें पानी भरने के कारण बंद हो गईं। रात की बारिश और सड़कों पर पानी,गाड़ी खराब हो जाए तो सिवाय भुगतने के और कुछ भी नहीं। शहर के भीतर और बाहर(आउटर) में गुजर बसर करने वाले चाहे वो कालोनी के मकान हों, चाहे किसी गली या मुहल्ले के,सभी बारिश की झमाझम से परेशान दिखे। किसी ने लाखों,करोड़ों खर्च कर,तो किसी ने हजारों, लाखों में अपना आशियाना बनाया है, पर सभी अपने घरों में पानी भरने से परेशान रहे। घर में आरामदायक बिस्तर,सोफा सहित तमाम सुविधाएं होने के बाद भी वे आंखों ही आंखों में रात गुजारने को मजबूर दिखे। दिन में भी कभी काम ना करने वाले लोग रात को आई इस आफत से बचने कुदाल,फावड़ा लेकर जद्दोजहद करते दिख गए। अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाले वे लोग अचानक बरसने वाली इस मुसीबत के लिए शासन,प्रशासन को कोसते भी नजर आए। वैसे अभी इस परेशानी को राजधानी के लिए शुरुआत मान सकते हैं। क्योंकि आने वाले आठ-दस सालों तक और यहां के लोग यदि इसी तरह शहर का बारह बजाते रहे तो कुछ कालोनियों, कुछ बस्तियों और कुछ सड़कों तक हाहाकार मचाने वाली पानी पूरे रायपुर शहर को ले डूबेगी। क्योंकि शहर के मुहल्लों और कालोनियों में कभी मुरम की दिखने वाली सड़कों को आज पूरी तरह से कांक्रीट में बदल दिया गया है। अब कांक्रीट,पानी सोंके तो सोंके कैसे? बारिश से गिरने वाला जल जमीन के भीतर जाए तो जाए कैसे? शासन और प्रशासन में बैठे कुछ लोग कमीशन के चक्कर में पूरे शहर की जमीन को पत्थर में बदल चुके हैं और लगातार शहर में तेजी से इस तरह के काम को अंजाम देने में लगे हैं। प्रशासन के जिम्मेदार चाहें तो इस पर रोक लगाकर आने वाले समय में होने वाली मुसीबत से लोगों को बचा सकते हैं। इसके लिए आम लोगों को भी सामने आना होगा। मकान और कालोनियों का निर्माण विकास के लिए सही है लेकिन प्रकृति के साथ खिलवाड़ करके ऐसा विकास हमें कहां ले जाएगा? समय के साथ लगातार बदल रही राजधानी की जनसंख्या पिछले कुछ वर्षों में सबसे ज्यादा बढ़ी है। जनसंख्या बढऩे के कारण शहर के क्षेत्रफल में भी काफी इजाफा हुआ है। शहर के आसपास कभी खेतों की शक्ल में दिखने वाली जमीनें अब कालोनियों और बस्तियों में तब्दील हो चुकी हैं। जाहिर है इसके लिए पेड़ों के साथ जमीनों को भी कुर्बान किया गया होगा। अब जब जमीन ही नहीं होगी,पेड़ ही नहीं होंगे तो मिट्टी का कटाव कहां से होगा,मिट्टी की जमीन ही नही होगी तो पानी धरती के भीतर जाएगी कैसे? तेजी से विकसित हो रहे शहर में बड़े-बड़े कांक्रीट के जंगल उग आए हैं मिट्टीनुमा धरती समाप्त होती जा रही है, जमीन का स्थान कांक्रीटों ने ले लिया है। आखिरकार ऐसे मे कब तक हम प्रकृति से सहायता की उम्मीद कर सकते हैं प्रकृति से खिलवाड़ करने वालों को तो प्रकृति ही सबक सिखाएगी ना... तो ऐसे में जनाब रायपुर डूबने से बचेगा कैसे?

doobane se bachega kaise ?

doobane se bachega kaise ?


Tuesday, July 14, 2009

बंद क्यों ?

बंद क्यों ?

किसी भी मामले पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए विपक्षी पार्टी, छोटे दलों या व्यापारिक संगठनों द्वारा सस्ता,सुंदर और मीडिया में आसानी से आने के लिए एक रास्ता निकाल लिया गया है बंद का। बंद मतलब,काम बंद,दैनिक जरुरतों की चीजों से लेकर आम लोगों के जीवन चक्र से जुड़ी तमाम चीजें बंद। ठीक है विरोध प्रदर्शन अच्छी बात है लेकिन विरोध प्रदर्शन करने के लिए बंद का स्वरुप ऐसा होना चाहिए जिससे वह संस्था,पार्टी या व्यक्ति सबसे ज्यादा प्रभावित हो जिसका विरोध किया जा रहा है। गौर करें तो बंद हमेशा सरकार की गलत कार्यप्रणाली या किसी मामले पर सरकार की असफलता के विरोध में किया जाता है। लेकिन बंद के दौरान सिर्फ सरकारी दफ्तरों को छोड़ सब कुछ बंद रहता है। यहां पर सोचने और देखने वाली बात यह है कि जब सरकार के विरोध में बंद करवाया जाता है तो आम लोगों को इससे सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है। बल्कि होना यह चाहिए कि बंद करवाने वाली पार्टियों या संस्थाओं को नेताओं और सरकार से जुड़े हुए लोगों को परेशान करना चाहिए,सरकारी दफ्तरों में ताला जडऩा चाहिए। सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को अपने घरों से निकलने नहीं देना चाहिए। हालिया घटित घटना के विरोध में बंद किया भी गया तो सरकार के विरोध में। बंद के दौरान छग सरकार को भी जमकर कोसा गया लेकिन जरुरत है जिन्होंने(नक्सलियों ने) इस घटना को अंजाम दिया उसके विरोध में आवाज बुलंद करने की। उनके बढ़ते कदमों को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास करने की। सिर्फ आम आदमी के पेट पर लात मारकर बंद को किस तरह से सफल बनाया जा सकता है? बंद की सफलता असफलता पर ध्यान दें तो बंद से ना तो व्यापारी वर्ग को नुकसान होता है, ना तो नेताओं को नुकसान होता और ना ही हाई प्रोफाइल लोगों को नुकसान होता है, बंद से नुकसान होता है तो केवल गरीबों और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों को,जो रोज काम करने के एवज खाना खा सकते हैं। अब बंद करवाकर इसे सफल बताने वाले लोग क्या गरीबों की पेट पर लात मारकर इसे सफल बता सकते हैं। बंद करवाने से किसी को क्या मिल गया होगा? यदि बंद को सार्थक करना है तो आने वाले समय में आम लोगों के हितों की रक्षा के दावे करने वाले नेताओं को बंद की परिभाषा बदलनी पड़ेगी।

बंद क्यों ?


Monday, July 13, 2009

aakhir kab ?

aakhir kab ?

कब तक यूं ही नक्सलियों की गोलियों का निशाना बनते रहेंगे जवान



आखिर कब ?

कब तक यूं ही नक्सलियों की गोलियों का निशाना बनते रहेंगे जवान

जबानी जंग जीतने में माहिर नेता और अधिकारियों को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि यदि नक्सलियों के तेजी से बढ़ते कदमों को रोकने प्रदेश सरकार द्वारा गंभीरता नहीं दिखाई गई तो पूरे प्रदेश में कश्मीर जैसे हालात पैदा होते देर नहीं लगेगी। कश्मीर में भले ही आतंकियों का कब्जा हो लेकिन छत्तीसगढ़ में पांव जमा चुके नक्सली अब किसी भी मामले में आंतकियों से कम नहीं है। इनकी कार्यशैली भी पूरी तरह आतंकवादियों की तरह हो गई है। अब नक्सलियों का उद्देश्य सिर्फ आतंक फैलाना और लोगों की हत्या करना ही रह गया है।

एक के बाद एक बड़ी घटनाओं को अंजाम दे रहे नक्सलियों से लडऩे के लिए सरकार के पास ना को रणनीति है ना ही उनके पुलिस अधिकारियों के पास कोई योजना। राज्य की सबसे बड़ी समस्या बन चुके हैं नक्सली। लेकिन नक्सलियों की गतिविधियों पर रोक लगाने अब तक किए जा रहे सभी सरकारी और प्रशासनिक दावे सिर्फ कहने सुनने को रह गए हैं। अब तक ऐसा कोई भी कदम सरकार और उनकी पुलिस के द्वारा नहीं उठाए गए हैं जिससे यह पता चल सके कि नक्सली मामले में सरकार कितनी गंभीर है। नक्सली लगातार राज्य के भीतर अपनी गतिविधियां बढ़ाने में लगे हैं लेकिन पुलिस का खुफिया तंत्र बत्ती बुझाए बैठा है। इंटेलिजेंस कहने और सुनने में तो काफी अच्छा लगता है लेकिन उनकी इंटेलिजेंसी कहां है उसका पता नहीं? प्रदेश के लिए नासूर बन चुके नक्सलियों का इलाज कैसे करना शायद डाक्टर साहब को भी समझ नहीं आ रहा है। समय लगातार बीतता जा रहा है लेकिन इस समस्या ने निबटने के लिए आज तक सरकार और पुलिस विभाग के अफसरों ने कुछ भी नहीं किया है,किया है तो सिर्फ नक्सलियों ने। राज्य में जब भी नक्सली मामलों का जिक्र किया जाता है तो एक ही बात सामने आती है कि केन्द्र से सहयोग नहीं मिल रहा है? सूचना तंत्र (खुफिया) फेल होने की बात कही जाती है तो पुलिस के बड़े अफसर बड़ी सफाई से टाल जाते हैं कि आप लोगों को बता देंगे तो वो खुफिया कहां रह जाएगा। जब लालगढ़ में घुसकर तबाही मचाने वाले नक्सलियों को खदेड़ा जा सकता है तो छत्तीसगढ़ में भी इस तरह की किसी योजना पर काम क्यों नहीं किया जा सकता। जबानी जंग जीतने में माहिर नेता और अधिकारियों को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि यदि नक्सलियों के तेजी से बढ़ते कदमों को रोकने प्रदेश सरकार द्वारा गंभीरता नहीं दिखाई गई तो पूरे प्रदेश में कश्मीर जैसे हालात पैदा होते देर नहीं लगेगी। कश्मीर में भले ही आतंकियों का कब्जा हो लेकिन छत्तीसगढ़ में पांव जमा चुके नक्सली अब किसी भी मामले में आंतकियों से कम नहीं है। इनकी कार्यशैली भी पूरी तरह आतंकवादियों की तरह हो गई है। अब नक्सलियों का उद्देश्य सिर्फ आतंक फैलाना और लोगों की हत्या करना ही रह गया है। बारुद के ढेर पर बैठे राज्य के पुलिस प्रशासन प्रमुख की गतिविधयां भी समझ से परे है। हर नक्सली वारदात के बाद सीएम,एचएम,डीजीपी सहित तमाम सत्ताधारी नेताओं के यह बयान आते हैं कि शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। लेकिन शहीदों की शहादत कब सार्थक होगी, वह समय कब आएगा, शायद यह प्रदेश के नेता और अफसर किसी के भी दिमाग के करोड़वें हिस्से को भी नहीं पता होगा।

Friday, July 3, 2009

एक व्यक्ति एक पेड़ लगा ले तो भला हो जाएगा देश का...


एक व्यक्ति एक पेड़ लगा ले

तो भला हो जाएगा देश का...

कटते जंगल और गिरते

वातावरण का स्तर सुधर सकता है

देश में जिस गति से पेड़ कट रहे हैं जंगल तबाह हो रहे हैं उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि आने वाले दस सालों में आंखे पेड़ देखने तक को तरस जाएगी। इसी गति से पेड़ों की बलि चढ़ाई जाती रही तो निश्चित ही प्रकृति इसका भयंकर परिणाम मनुष्यों को देगी। पेड़ पौधों का जीवन मानव जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है लेकिन आने वाले कुछ वर्षों में जिस तरह विकास के नाम पर हरियाली की बलि चढ़ाई जाती रही है यह काफी चिंतनीय विषय है। इस पर समाज के चिंतकों को राजनेताओं को जिम्मेदार अधिकारियों को गहन चिंतन मनन करना चाहिए कि इस पर किस तरह से रोक लगाई जाए। क्यों कि यदि पेड़ (जंगल) नहीं होंगे तो बारिश नहीं होगी यदि बारिश हुई भी तो जहां पेड़ नहीं होंगे वहां पर बारिश का पानी धरती के नीचे जाएगा वहां तो मिट्टी का कटाव ही नहीं होगा। इससे जलस्तर लगातार नीचे चला जाएगा और पानी की कमी से जलसंकट जैसी गंभीर स्थिति पैदा हो जाएगी। जल संकट होने से दैनिक जीवन पर इसका काफी बुरा असर पड़ेगा। इससे हर व्यक्ति प्रभावित होगा चाहे वो कोई भी हो। क्योंकि पानी हर किसी की जरुरत है। पेड़ों की कम होती संख्या आने वाले समय में लोगों के जीवन में काफी भयावह समस्या लेकर आएगी। इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन इस विकराल समस्या से बचने के लिए जब तक व्यक्ति खुद से प्रयास नहीं करेगा तब तक उसे कोई नहीं बचा सकता। यदि प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ एक पेड़ लगाकर उसे सहेजना चालू कर दे तो आने वाले एक दशक में कुछ हद तक जलस्तर को गिरने से भी रोका जा सकता है साथ ही प्रदूषण को रोका जा सकता है स्वच्छ हवा में श्वांस ले सकते हैं इसके अलावा और भी कई बाते हैं जिससे हमें नुकसान कुछ नहीं होगा बल्कि लाभ ही लाभ होगा। तो हर कोई एक पेड़ अवश्य लगाए और पृथ्वी की रक्षा में सहभागी बन अपने स्वयं की रक्षा करें।