Tuesday, July 14, 2009

बंद क्यों ?

बंद क्यों ?

किसी भी मामले पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए विपक्षी पार्टी, छोटे दलों या व्यापारिक संगठनों द्वारा सस्ता,सुंदर और मीडिया में आसानी से आने के लिए एक रास्ता निकाल लिया गया है बंद का। बंद मतलब,काम बंद,दैनिक जरुरतों की चीजों से लेकर आम लोगों के जीवन चक्र से जुड़ी तमाम चीजें बंद। ठीक है विरोध प्रदर्शन अच्छी बात है लेकिन विरोध प्रदर्शन करने के लिए बंद का स्वरुप ऐसा होना चाहिए जिससे वह संस्था,पार्टी या व्यक्ति सबसे ज्यादा प्रभावित हो जिसका विरोध किया जा रहा है। गौर करें तो बंद हमेशा सरकार की गलत कार्यप्रणाली या किसी मामले पर सरकार की असफलता के विरोध में किया जाता है। लेकिन बंद के दौरान सिर्फ सरकारी दफ्तरों को छोड़ सब कुछ बंद रहता है। यहां पर सोचने और देखने वाली बात यह है कि जब सरकार के विरोध में बंद करवाया जाता है तो आम लोगों को इससे सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है। बल्कि होना यह चाहिए कि बंद करवाने वाली पार्टियों या संस्थाओं को नेताओं और सरकार से जुड़े हुए लोगों को परेशान करना चाहिए,सरकारी दफ्तरों में ताला जडऩा चाहिए। सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को अपने घरों से निकलने नहीं देना चाहिए। हालिया घटित घटना के विरोध में बंद किया भी गया तो सरकार के विरोध में। बंद के दौरान छग सरकार को भी जमकर कोसा गया लेकिन जरुरत है जिन्होंने(नक्सलियों ने) इस घटना को अंजाम दिया उसके विरोध में आवाज बुलंद करने की। उनके बढ़ते कदमों को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास करने की। सिर्फ आम आदमी के पेट पर लात मारकर बंद को किस तरह से सफल बनाया जा सकता है? बंद की सफलता असफलता पर ध्यान दें तो बंद से ना तो व्यापारी वर्ग को नुकसान होता है, ना तो नेताओं को नुकसान होता और ना ही हाई प्रोफाइल लोगों को नुकसान होता है, बंद से नुकसान होता है तो केवल गरीबों और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों को,जो रोज काम करने के एवज खाना खा सकते हैं। अब बंद करवाकर इसे सफल बताने वाले लोग क्या गरीबों की पेट पर लात मारकर इसे सफल बता सकते हैं। बंद करवाने से किसी को क्या मिल गया होगा? यदि बंद को सार्थक करना है तो आने वाले समय में आम लोगों के हितों की रक्षा के दावे करने वाले नेताओं को बंद की परिभाषा बदलनी पड़ेगी।

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