
...डूबने से बचेगा कैसे ?
राजधानी रायपुर में मात्र एक दिन की जोरदार बारिश ने ऐसा कहर बरपाया कि आम जनता से लेकर प्रशासन का हर जिम्मेदार अफसर आंहे भरता नजर आया। शहर की सबसे व्यस्त एवं प्रमुख सडकों का ये हाल था जैसे किसी गांव खेड़े की सड़कों का होता है। शहर की सभी सड़कें तालाबों में बदल गई थी। इन सड़कों से गुजरने वाले लोगों की वाहनें पानी भरने के कारण बंद हो गईं। रात की बारिश और सड़कों पर पानी,गाड़ी खराब हो जाए तो सिवाय भुगतने के और कुछ भी नहीं। शहर के भीतर और बाहर(आउटर) में गुजर बसर करने वाले चाहे वो कालोनी के मकान हों, चाहे किसी गली या मुहल्ले के,सभी बारिश की झमाझम से परेशान दिखे। किसी ने लाखों,करोड़ों खर्च कर,तो किसी ने हजारों, लाखों में अपना आशियाना बनाया है, पर सभी अपने घरों में पानी भरने से परेशान रहे। घर में आरामदायक बिस्तर,सोफा सहित तमाम सुविधाएं होने के बाद भी वे आंखों ही आंखों में रात गुजारने को मजबूर दिखे। दिन में भी कभी काम ना करने वाले लोग रात को आई इस आफत से बचने कुदाल,फावड़ा लेकर जद्दोजहद करते दिख गए। अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाले वे लोग अचानक बरसने वाली इस मुसीबत के लिए शासन,प्रशासन को कोसते भी नजर आए। वैसे अभी इस परेशानी को राजधानी के लिए शुरुआत मान सकते हैं। क्योंकि आने वाले आठ-दस सालों तक और यहां के लोग यदि इसी तरह शहर का बारह बजाते रहे तो कुछ कालोनियों, कुछ बस्तियों और कुछ सड़कों तक हाहाकार मचाने वाली पानी पूरे रायपुर शहर को ले डूबेगी। क्योंकि शहर के मुहल्लों और कालोनियों में कभी मुरम की दिखने वाली सड़कों को आज पूरी तरह से कांक्रीट में बदल दिया गया है। अब कांक्रीट,पानी सोंके तो सोंके कैसे? बारिश से गिरने वाला जल जमीन के भीतर जाए तो जाए कैसे? शासन और प्रशासन में बैठे कुछ लोग कमीशन के चक्कर में पूरे शहर की जमीन को पत्थर में बदल चुके हैं और लगातार शहर में तेजी से इस तरह के काम को अंजाम देने में लगे हैं। प्रशासन के जिम्मेदार चाहें तो इस पर रोक लगाकर आने वाले समय में होने वाली मुसीबत से लोगों को बचा सकते हैं। इसके लिए आम लोगों को भी सामने आना होगा। मकान और कालोनियों का निर्माण विकास के लिए सही है लेकिन प्रकृति के साथ खिलवाड़ करके ऐसा विकास हमें कहां ले जाएगा? समय के साथ लगातार बदल रही राजधानी की जनसंख्या पिछले कुछ वर्षों में सबसे ज्यादा बढ़ी है। जनसंख्या बढऩे के कारण शहर के क्षेत्रफल में भी काफी इजाफा हुआ है। शहर के आसपास कभी खेतों की शक्ल में दिखने वाली जमीनें अब कालोनियों और बस्तियों में तब्दील हो चुकी हैं। जाहिर है इसके लिए पेड़ों के साथ जमीनों को भी कुर्बान किया गया होगा। अब जब जमीन ही नहीं होगी,पेड़ ही नहीं होंगे तो मिट्टी का कटाव कहां से होगा,मिट्टी की जमीन ही नही होगी तो पानी धरती के भीतर जाएगी कैसे? तेजी से विकसित हो रहे शहर में बड़े-बड़े कांक्रीट के जंगल उग आए हैं मिट्टीनुमा धरती समाप्त होती जा रही है, जमीन का स्थान कांक्रीटों ने ले लिया है। आखिरकार ऐसे मे कब तक हम प्रकृति से सहायता की उम्मीद कर सकते हैं प्रकृति से खिलवाड़ करने वालों को तो प्रकृति ही सबक सिखाएगी ना... तो ऐसे में जनाब रायपुर डूबने से बचेगा कैसे?
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