Monday, July 13, 2009

कब तक यूं ही नक्सलियों की गोलियों का निशाना बनते रहेंगे जवान



आखिर कब ?

कब तक यूं ही नक्सलियों की गोलियों का निशाना बनते रहेंगे जवान

जबानी जंग जीतने में माहिर नेता और अधिकारियों को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि यदि नक्सलियों के तेजी से बढ़ते कदमों को रोकने प्रदेश सरकार द्वारा गंभीरता नहीं दिखाई गई तो पूरे प्रदेश में कश्मीर जैसे हालात पैदा होते देर नहीं लगेगी। कश्मीर में भले ही आतंकियों का कब्जा हो लेकिन छत्तीसगढ़ में पांव जमा चुके नक्सली अब किसी भी मामले में आंतकियों से कम नहीं है। इनकी कार्यशैली भी पूरी तरह आतंकवादियों की तरह हो गई है। अब नक्सलियों का उद्देश्य सिर्फ आतंक फैलाना और लोगों की हत्या करना ही रह गया है।

एक के बाद एक बड़ी घटनाओं को अंजाम दे रहे नक्सलियों से लडऩे के लिए सरकार के पास ना को रणनीति है ना ही उनके पुलिस अधिकारियों के पास कोई योजना। राज्य की सबसे बड़ी समस्या बन चुके हैं नक्सली। लेकिन नक्सलियों की गतिविधियों पर रोक लगाने अब तक किए जा रहे सभी सरकारी और प्रशासनिक दावे सिर्फ कहने सुनने को रह गए हैं। अब तक ऐसा कोई भी कदम सरकार और उनकी पुलिस के द्वारा नहीं उठाए गए हैं जिससे यह पता चल सके कि नक्सली मामले में सरकार कितनी गंभीर है। नक्सली लगातार राज्य के भीतर अपनी गतिविधियां बढ़ाने में लगे हैं लेकिन पुलिस का खुफिया तंत्र बत्ती बुझाए बैठा है। इंटेलिजेंस कहने और सुनने में तो काफी अच्छा लगता है लेकिन उनकी इंटेलिजेंसी कहां है उसका पता नहीं? प्रदेश के लिए नासूर बन चुके नक्सलियों का इलाज कैसे करना शायद डाक्टर साहब को भी समझ नहीं आ रहा है। समय लगातार बीतता जा रहा है लेकिन इस समस्या ने निबटने के लिए आज तक सरकार और पुलिस विभाग के अफसरों ने कुछ भी नहीं किया है,किया है तो सिर्फ नक्सलियों ने। राज्य में जब भी नक्सली मामलों का जिक्र किया जाता है तो एक ही बात सामने आती है कि केन्द्र से सहयोग नहीं मिल रहा है? सूचना तंत्र (खुफिया) फेल होने की बात कही जाती है तो पुलिस के बड़े अफसर बड़ी सफाई से टाल जाते हैं कि आप लोगों को बता देंगे तो वो खुफिया कहां रह जाएगा। जब लालगढ़ में घुसकर तबाही मचाने वाले नक्सलियों को खदेड़ा जा सकता है तो छत्तीसगढ़ में भी इस तरह की किसी योजना पर काम क्यों नहीं किया जा सकता। जबानी जंग जीतने में माहिर नेता और अधिकारियों को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि यदि नक्सलियों के तेजी से बढ़ते कदमों को रोकने प्रदेश सरकार द्वारा गंभीरता नहीं दिखाई गई तो पूरे प्रदेश में कश्मीर जैसे हालात पैदा होते देर नहीं लगेगी। कश्मीर में भले ही आतंकियों का कब्जा हो लेकिन छत्तीसगढ़ में पांव जमा चुके नक्सली अब किसी भी मामले में आंतकियों से कम नहीं है। इनकी कार्यशैली भी पूरी तरह आतंकवादियों की तरह हो गई है। अब नक्सलियों का उद्देश्य सिर्फ आतंक फैलाना और लोगों की हत्या करना ही रह गया है। बारुद के ढेर पर बैठे राज्य के पुलिस प्रशासन प्रमुख की गतिविधयां भी समझ से परे है। हर नक्सली वारदात के बाद सीएम,एचएम,डीजीपी सहित तमाम सत्ताधारी नेताओं के यह बयान आते हैं कि शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। लेकिन शहीदों की शहादत कब सार्थक होगी, वह समय कब आएगा, शायद यह प्रदेश के नेता और अफसर किसी के भी दिमाग के करोड़वें हिस्से को भी नहीं पता होगा।

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