नत्था तो नहीं मरा पर ...
किसानो की पीड़ा पर आधारित फिल्म पिपली लाइव में नत्था भले ही न मरे पर आज देश में ऐसे सैकड़ो किसान है जो अपनी व्यथा और सरकारी अनदेखी के कारण मर रहे है. किसानो की हित की बात करने वाली सरकार में आज किसान ही सबसे ज्यादा प्रतार्डित है. कभी अकाल तो कभी भारी बारिश हर हाल में किसान भुगतना किसान को ही पड़ता है. हर साल किसान मौसम की मार झेलता ही है. इतनी विषम परिस्थितियों में भी किसम अपना हौसला नहीं खोता लेकिन जब सरकारी सहायता उन्हें नहीं मिलती तब वो जरुर विचलित हो जाता है. ऐसी बात नहीं है कि सरकार के पास किसानो के लिए योजना नहीं है या फिर सरकार के पास पैसा नहीं है. सरकार के पास सब कुछ है लेकिन सरकारी तंत्र में कुछ ऐसे दलाल और कामचोर व् बेईमान लोग आ गए है जिसके कारण किसानो को मिलने वाला हक़ उन्हें नहीं मिल पाता. जबकि उनके हित का पैसा वो बड़ी चतुराई से डकार जाता है. छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ में देखे तो यहाँ किसान दुसरे कारणों से परेशान है. यहाँ उनके पास जमीन हैं, हल है, बैल है, लेकिन उनके पास कम करने वाले मजदूर नहीं है. जिसके कारण किसानी काम प्रभावित हो रहा है. मजदूर मिल भी रहे है तो उनके भाव इतने बड़े है कि उनका कोई इलाज नहीं है. मजदूर आज इतना भाव ताव इसलिए दिखा रहा है क्योंकि सरकार द्वारा उनको १-२-३ रूपए किलो में चावल दे रहा है. इसलिए अब वो काम नहीं करना चाहते. जब ये योजना चालू हुई है तब से किसानो कि कमर ही टूट गयी है. राज्य सरकार भले ही चावल योजना का पुरे देश में गुणगान करे लेकिन इससे राज्य का भला होने कि बजाय किसानो का बुरा जरुर हो रहा है. हम इसके विरोधी नहीं है कि सरकार गरीबों को चावल न दे जरुर दे लेकिन उन्हें काम के बदले अनाज योजना के रूप में दे ताकि वे मजदूर मेहनत भी करे. इस योजना से मजदूर अब आलसी होते जा रहे है. यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के किसान पिछले कुछ सालों से लगातार परेशान हो रहे है और खेती-बाढ़ी के काम में ज्यादा रूचि नहीं ले रहे है. यही कारण है यहाँ तो हर नत्था परेशान है.
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