Sunday, June 28, 2009
समलैंगिक रिश्तों को मान्यता?
समलैंगिक रिश्तों को मान्यता?
शक के घेरे में रहेंगे दो जिगरी दोस्त
भारत जैसे सुसंस्कृत देश में रिश्तों की अहमियत को काफी जोर दिया जाता है यहां पर समलैंगिकता जैसे विषय पर विचार करना ही समझ से परे है। भारत और विदेशों की संस्कृति में जमीन आसमान का अंतर है। टीवी में पनप रही विदेशी संस्कृति का देश के भीतर लगातार विरोध होता रहा है लेकिन घर के अंदर प्रवेश कर चुके टीवी संस्कृति पर लगाम लगाने में अब तक ना सिर्फ सरकार बल्कि परिवार का वह व्यक्ति स्वयं असहाय है जो खुद परिवार का मुखिया है। अब ऐसे में एक और विदेशी संस्कृति को भारत में लादने की तैयारी सरकार में बैठे कुछ जिम्मेदार लोगों द्वारा की जा रही है। सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे इन नुमाइंदों की सुनें तो वे इस आधार पर इसकी मान्यता के लिए विचार कर रहे हैं कि देश के कई अन्य देशों में इसे मान्यता मिल गई है लेकिन क्या वे जिम्मेदार भारतीय संस्कृति से परिचित नहीं है और क्या वे यह नहीं जानते कि इस देश में ऐसी किसी चीज के लिए कोई जगह नहीं है। बावजूद इसके सरकार में बैठे कुछ लोग कुछ मुठ्ठी भर लोगों की मांग पर इतना बड़ा निर्णय लेने पर विचार कर रहे हैं। भारत देश में सेक्स लगातार विकृत रुप ले रही है समलैंगिकों को बढ़ावा देने से समाज में इसका और भी ज्यादा विकृत रुप में सामने आएगा। इस मान्यता से आपसी संबंधों में भी खटास आने की भरपूर संभावना है। अभी तक एक महिला और पुरुष के बीच नजदीकियों को गलत निगाह से देखा जाता रहा है लेकिन इस तरह के रिश्तों को मान्यता मिल जाने के बाद दो पुरुषों को आपस में गंभीरता और आपसी बात करते देख लोगों के दिमाग में बेवजह ही शक जैसी खतरनाक चीज उतपन्न होगी। यही हाल दो महिलाओं के बारे में भी होगा। इससे सबसे ज्यादा तकलीफ ऐसे दोस्तों को होगी जो एक-दूसरे से काफी क्लोज होते हैं या जिसे जिगरी दोस्त की संज्ञा दी जाती है। यह प्रकृति का नियम है कि जब तक समाज में किसी प्रकार का नियम नहीं बनता तब तक उस नियम का उल्लंघन नहीं होता लेकिन नियम के बनते ही लोगों के दिमाग में उस नियम से खिलवाड़ करने की तरह-तरह की योजनाएं बनने लग जाती हैं यही इस कानून के साथ भी होगा। जो आने वाले समय में समाज में विकृतियां और विसंगतियां तो पैदा करेंगी ही साथ ही इससे हिंसा जैसी चीजों को भी बढ़ावा मिलेगा।
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