Wednesday, April 21, 2021

जिनके यज्ञ से अवतरित हुए उनकी तपोस्थली तथा जिनकी गोद में खेलकर बड़े हुए उनकी जन्मस्थली है छत्तीसगढ़


 








0 भगवान राम छत्तीसगढ़ से गहरा नाता, यह उनका ननिहाल इसलिए हर भांजे को भगवान की तरह पूजते हैं 

0 रामनवमीं पर विशेष 

छत्तीसगढ़ के साथ भगवान राम का बहुत ही गहरा नाता है। अयोध्या के राजा राम अपने चारों भ्राताआें के साथ जिनके द्वारा किए गए यज्ञ से धरती पर अवतरित हुए उनकी तपोस्थली आैर जिनकी गोद में खेलकर बड़े हुए उनकी जन्मस्थली दोनों ही छत्तीसगढ़ में मौजूद है। यही नहीं अपने वनवास काल के 12 साल उन्होंने छत्तीसगढ़ की धरती पर ही बिताएं। भगवान राम की छत्तीसगढ़ के अलग-अलग स्थानों से अलग-अलग किवदंतियां जुड़ी हुई हैं। रामनवमीं के अवसर पर हम आपके लिए उन्हें सहेजकर प्रस्तुत कर रहे हैं। 



भगवान राम का छत्तीसगढ़ से संबंध इसलिए भी प्रगाढ़ है क्योंकि श्रृंगि ऋषि द्वारा किए गए पुत्रकामेष्टी यज्ञ से उनकी आैर उनके चारों भाइयों का जन्म हुआ था। वर्तमान में धमतरी जिले के सिहावा पर्वत पर श्रृंगि ऋषि का आश्रम मौजूद है जहां श्रृंगि ऋषि ध्यान की मुद्रा में विराजमान हैं। वहीं जिनके गर्भ से भगवान राम की उत्पत्ति हुई ऐसी मां कौशल्या की जन्मभूमि भी रायपुर से कुछ ही दूरी पर स्थित चंदखुरी को माना जाता है जहां पर माता कौशल्या का मंदिर भी स्थापित है। यानी छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल है। यहां भगवान राम के मामा का भी घर है इसलिए छत्तीसगढ़ में भांजों को भगवान की तरह पूजा जाता है। 

इतिहासकारों के मुताबिक भगवान रामगमन के पुख्ता प्रमाण यहां मिलते हैं। कहा जाता है कि रामायणकाल में वनवास के दौरान जिस शबरी के घर राम पहुंचे थे वो शबरीधाम भी यहीं है जिसे अब शिवरीनारायण के नाम से जाना जाता है। यहां भगवान राम और शबरी के मंदिर हैं। इसी तरह कसडोल के तुरतुरिया में महर्षि वाल्मिकी का अाश्रम है जहां पर माता सीता ने शरण ली थी आैर यहीं पर उनके दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ था। 

यहां पर की भगवान शिव की आराधना 

भगवान राम ने छत्तीसगढ़ में सीतामढ़ी-हरचौका से प्रवेश किया। भरतपुर के पास यह स्थान मवई नदी के तट पर है। जहां गुफानुमा 17 कक्ष हैं जिसमें रहकर भगवान राम ने भगवान शिव की आराधना की। यहां कुछ समय बिताने के बाद वे सीतामढ़ी घाघरा पहुंचे फिर घाघरा से कोटाडोल होते हुए नेउर नदी तट पर बने छतौड़ा पहुंचे, जहां राम, माता सीता और लक्ष्मण ने पहला चातुर्मास बिताया। इसके बाद उन्होंने आेड़गी के पास स्थित सीताबेंगरा और जोगीमारा गुफा में दूसरा चातुर्मास बिताया। फिर धर्मजयगढ़ क्षेत्र में हथफोर गुफा से होते तीनों लक्ष्मणगढ़ पहुंचे। इसके बाद मैनी व मांड नदी तट से होते देउरपुर आए। ऐसी किवदंतियां प्रचलित हैं कि भगवान राम आैर लक्ष्मण ने रक्सगंडा में हजारों राक्षसों का वध किया, फिर किलकिला में तीसरा चातुर्मास बिताया। यहां से टिकरा होते हुए चंद्रपुर आए। इस तरह सरगुजा व जशपुर क्षेत्र में भगवान राम ने वनवास के तीन साल बिताए। 

मध्य छत्तीसगढ़ में बिताए पांच साल

चंद्रपुर के बाद भगवान राम शिवरीनारायण पहुंचे। जहां चौथा चौमासा बिताया। इसके बाद खरौद, मल्हार,धमनी, नारायणपुर होते हुए तुरतुरिया स्थित वाल्मिकी आश्रम पहुंचे। कछ दिन यहां बिताने के बाद सिरपुर आए। यहां से आरंग होते हुए फिंगेश्वर के मांडव्य आश्रम फिर चंपारण्य होते हुए कमलक्षेत्र राजिम आए जहां से मगरलोड से सिरकट्‌टी आश्रम होते हुए मधुबन पहुंचे। फिर रुद्री, गंगरेल होते हुए दुधावा होकर देवखुंट और फिर सिहावा पहुंचे।

सिहावा में बीता ज्यादा समय : 

इतिहासकारों के मुताबिक धमतरी जिले के पास नगरी सिहावा में भगवान राम का सबसे ज्यादा समय बीता है। इसके पीछे उनका तर्क है कि सिहावा में रहने वाले ऋषि श्रृंगी दशरथ की दत्तक पुत्री शांता के पति थे। सिहावा पर्वत पर स्थित शांता गुफा इसका प्रमाण है।

बस्तर क्षेत्र में भी रहे भगवान राम 

मध्य छत्तीसगढ़ में करीब पांच साल बिताने के बाद प्रभु राम कंक ऋषि के आश्रम की ओर बढ़े। वर्तमान में यह इलाका कांकेर कहलाता है। वहां से केशकाल होते हुए धनोरा पहुंचे। यहां सैकड़ों राक्षसों का वध करने के बाद नारायणपुर होते हुए छोटे डोंगर पहुंचे फिर बारसूर होते हुए चित्रकोट पहुंचे। वहां चौमासा बिताने के बाद इंद्रावती नदी के तट पर बसे गांव नारायणपाल गए फिर जगदलपुर होते हुए गीदम पहुंचे। इसके बाद कोंटा और शबरी नदी के तट से होते हुए इंजरम पहुंचे। यहां से आगे बढ़े तो छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश के तटवर्ती इलाके कोलावरम पहुंचे। फिर भद्राचलम पहुंचे जो छत्तीसगढ़ में उनका आखिरी पड़ाव था, इसके बाद वे दक्षिणापथ की ओर बढ़ गए। 


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