Sunday, March 27, 2011

पांच साल पहले,पांच हजार की नौकरी करने वाला पांच साल बाद पांच अरब का मालिक

छत्तीसगढ़ में आना, खाना, कमाना और यहाँ के लोगों लूटकर ले जाना कोई नई बात नहीं है. राज्य बनने के बाद से यहाँ सिर्फ और सिर्फ ठगों का ही राज्य रहा है. पिछले दस साल के रिकार्ड को खंगाले तो पता चल जायेगा की जितने यहाँ के लोगों की भलाई में खर्च नहीं किया गया होगा उतना तो बाहर से आने वाले ठगों ने लूट लिया होगा. कभी चिटफंड कंपनी के नाम पर तो कभी फिनांस के नाम पर तो कभी दुगुना फायदा का लालच देकर. हर तरह से यहाँ की भोली-भली जनता को लूटा गया है. अभी हाल ही में लूट का एक नया तरीका सामने आया है. इसमें पहले स्कूल के माध्यम से फिर स्कूल के कुछ पैसों को मीडिया में इन्वेस्ट कर ठग ने ऐसा मायाजाल बुना कि राज्य का हर छोटा-बड़ा उसके चाल में फंसता चला गया. कभी भगवत कथा के नाम पर तो कभी कोई बड़ा आयोजन कर उस ठग ने प्रदेश के मुखिया को भी अपने दरवाजे पर लाता रहा. छत्तीसगढ़ में लगभग पांच-छह साल पहले आया राजेश शर्मा नाम ने कुछ इसी तरह प्रदेश भर के लोगो को ठग लिया. बताते है कि राजेश शर्मा ने एक टीचर के रूप में अपना काम शुरू किया था. फिर अचानक उसने डालफिन के नाम से एक स्कूल खोल लिया. पर एक स्कूल के बाद उनसे लगातार प्रदेश के हर बड़े कस्बों में अपना स्कूल खोलना प्रारंभ किया. स्कूल की संख्या बढाने के साथ ही उसने मीडिया में पैर जमाना चाहा. नेशनल लुक नाम से सांध्य दैनिक अखबार प्राम्भ किया. राजधानी में पत्रकारिता के उन तमाम नामो को उसमे शामिल किया जो राजधानी रायपुर में चल चुका था.  एक साल बाद ही उसे बंद कर ऑफिस कापी के रूप में चलता रहा. लेकिन  कम होते प्रभाव को देख उसने एक बार फिर अपने उसी अखबार को नए रूप में जिन्दा करने की तैयारी की और इस बार पिछली बार से भी ज्यादा ताकत के साथ. इस बार उस राजेश शर्मा ने रायपुर भास्कर की सबसे मजबूत टीम को तोड़कर वह कई सालों से अपनी सेवाए दे रहे पत्रकारों को अपने नेशनल लुक में शामिल किया. जिसने जितना चाहा उसे उतना पैसा दिया गया. इस बार मानो उसने तय कर लिया रहा हो कि जितना वो पेमेंट में खर्च करेगा उससे ज्यादा वो उनका दुरूपयोग कर कम लेगा. और हुआ भी यही, २०१० तक उसके एक भी स्कूल कि राज्य से मान्यता नहीं थी लेकिन मीडिया का दुरुपयोग कर उसने सिर्फ एक साल में ही ३० स्कूलों कि मान्यता हासिल कर ली. उसने स्कूल कि आड़ में एक मुस्त रकम लेने कि जो योजना बनाई उसी सी उसने २०० से ३०० करोड़ बना लिया. इसके अलावा बाज़ार से भी करोडो उठाये. बताते है कि  ये इसलिए सामने नहीं आ पा रहा है क्योंकि उसने कई लोगों कि ब्लैक मनी को वाईट करने का झांसा देकर लिया था. यदि कोई शिकायत लेकर गया तो पहले उसे उसका हिसाब देना पड़ जायेगा. राजेश शर्मा अब फरार हो गया है. स्कूल में पड़ने वाले बच्चों के भविष्य का भगवान ही मालिक है. मीडिया में काम करने वाले तो नौकरी खोज रहे है लेकिन दुःख तो इस बात का हो रहा है कि मीडिया के नामी लोगों को ठग कर गायब हो जाने वाला अब तक उतना प्रचारित नहीं हो पाया है जितना उसे करना चाहिए था. मीडिया के वे लोग चाहते तो एक हफ्ते के  भीतर देश के किसी भी कोने से खोज निकलते पर किसी भी पत्रकार ने ऐसा नहीं किया. वास्तविकता तो यह है कि सबसे मजबूत माने जाने वाले स्तम्भ आज सबसे कमजोर हो चुका है. दबे कुचले लोगों कि आवाज़ होने का दिखावा करने वाले खुद कितने दबे कुचले है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोई उनसे गद्दारी कर गया और वे चुप बैठे रह गए. जो लोग अपने लिए आवाज़ नहीं उठा सकते वे किसी दुसरे के लिए कैसे आवाज़ उठाने का दंभ भरते है. या तो वे अँधेरे में है या फिर उन्हें उजाला पसंद ही नहीं है. खैर अब वापस टापिक पर आते है   पांच साल पहले,पांच हजार की नौकरी करने वाला पांच साल बाद पांच अरब का मालिक कैसे बन गया. इसके लिए उसने वो सब किया जो किसी को भी आसानी से आकर्षित करने के लिए काफी था. हर छोटा कार्यक्रम बड़े और महंगे होटल में करवा कर उसने अपने आप को बहुत ही कम समय में इतना हाई प्रोफाइल बना लिया जिसके लिए लोगों को सालों लग जाते है. मीडिया का दुरुपयोग कैसे कर सकते है ये एक मिसाल है. राजेश शर्मा नाम का व्यक्ति हर वो काम कर लेना चाहता था जिसमे उसे आसानी से पैसा मिल जाए. फिल्म इंडस्ट्री में भी उनसे पैसा लगाया. भोजपुरी हीरो रविकिसन को लेकर फिल्म बना रहा था. एक फिल्म महतारी बना भी चुका है. बताते है कि उसके कई कलाकारों को आज तक पैसा ही नहीं मिला है. जो चेक मिला था वह बौंसा हो गया. धोखा देने के वो हर हथकंडे उसने अपनाये जो एक ठग अपना सकता है. जो पुलिस कभी उसे इज्जत देकर गुजर जाती थी आज वो यहाँ वहां उसकी तलाश में भटक रही है. आज राजेश शर्मा के नाम पर इनाम भी घोषित हो चुका है. पर कई अनसुलझे सवाल इसके पीछे छुपे है जो कही पहेली न बन जाए. ............

1 comment:

Atul Shrivastava said...

मीडिया से बडा बेचारा कोई है क्‍या दुनिया में।
दूसरों को त्‍यौहारों पर पगार या बोनस न मिले तो खबर बन जाती है अखबारों में और यदि उसी मीडियाकर्मी को उसके संस्‍थान से बोनस न मिले तो मन मारकर रह जाता है।
वैसे आपने अच्‍छा लिखा है इस विषय पर।
पर क्‍या अकेला राजेश शर्मा ने यह पूरी कलाकारी की होगी, राजधानी के मीडिया जगत के कुछ लोगों, नेताओं और अफसरों की मिलीभगत के बगैर क्‍या यह संभव हो सकता।
विचारणीय प्रश्‍न है यह।