घटता मानवीय मूल्य
मनुष्य ने विकास के रास्ते पर जितनी तेजी से कदम बढाया उतनी ही तेजी से एक चीज ने अपना मोल खोया है वह है मानवीय मूल्य. आज सिर्फ आदमी के जेब और कुर्सी की क़द्र ही होती है. इनके आगे सब बेकार. समय बदलने के साथ-साथ लोगो की सोच काफी तेजी से बदली है.आज आदमी के पास सब कुछ है लेकिन वह अपनी कीमत खोता जा रहा है.आज किसी भी इंसान की क़द्र करने के पहले उसके कद को देखा जाता है. भले वह व्यक्ति कितना भी गुणवान क्यों न हो यदि उसकी पहुच और पहचान ऊँची नहीं है तो कई लोग चाहकर भी उसकी क़द्र नहीं करते. समाज में तेजी से आ रहे इस बदलाव के कारण संस्कृति पर चोट पहुच रही है. व्यसायिकता और पैसों की अंधी दौड़ में लोग अपनी मर्यादा को भूलते जा रहे है. आज समाज में फ़ैल रहे इस महामारी को रोकने की जरुरत है.लेकिन इसकी सुरुआत करेगा कौन.सब चाहते है कि पडोसी के घर में पहले बगावत हो. अपना घर सुरक्षित हो.आज पुरे देश में हर कोई प्रगति कर रहा है लेकिन आर्थिक प्रगति ने आज जितनी उचाई पर जा पहुची है मानवीय मूल्य उतनी ही तेजी से नीचे गयी है. आगे न जाने क्या होगा?
1 comment:
... gambheer abhivyakti !!!
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