Monday, March 16, 2009

कितने जागरूक हैं लोग...


कितने जागरूक हैं लोग...
२१ वी सदी की ओर जा रहे देश के लोग कितने जागरूक हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर दूसरा वयक्ति किसी भी मामले में बोलने से बचना चाहता है. आज लोगों को सिर्फ अपनी परवाह है.पडोसी के घर में कोई तकलीफ होगी तो लोग ये सोचते हैं कि हमें क्या करना है. मोहल्ले में नल नहीं आ रहा हो,गली में कचरा फैला हो या फिर कोई दारू पीकर गाली -गलौच कर रहा हो कोई सामने नहीं आता. बल्कि अपने घरों के दरवाजे बंद करके टीवी की आवाज़ बढा कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं.ऐसे मामलों कुछ अपवाद स्वरुप व्यक्ति सामने आतें है तो समाज के अन्य लोग उसका समर्थन नहीं करते बल्कि उसकी आलोचना करने लग जाते हैं. ऐसी स्थिति में संघर्ष करने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से निराश एवं हताश हो जाता है और उसके मन में ये धारणा बन जाती है कि हमें सार्वजानिक हित के लिए संघर्ष करने से कोई फायदा नहीं है.इसका सीधा फायदा समाज के गलत तत्वों को मिलता है और उनका हौसला बढ़ता जाता है. इसका खामियाजा समाज के सभी लोगों को भुगतना पड़ता है.समाज में रहने वाले लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने के साथ हर गलत कार्यों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने के लिए तत्पर रहना चाहिए.साथ ही सार्वजनिक हित के लिए आवाज़ उठाने वाले व्यक्ति का खुले दिल से सहयोग करना चाहिए.तभी समाज में हावी गलत तत्त्व हतोत्साहित होंगे और एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा

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