Saturday, March 28, 2009

पढ़े लिखे लोग जागरूक कम, स्वार्थी ज्यादा...

पढ़े लिखे लोग जागरूक कम, स्वार्थी ज्यादा...

किसी ने ठीक कहा है पढ़े लिखे गवांर से अनपढ़ अच्छे.

कहते है कि शिक्षा से जागरूकता आती है लेकिन मेरे ख्याल से शिक्षा से जागरूकता नहीं बल्कि सिर्फ जानकारी बढ़ती है और इस जानकारी का उपयोग शिक्षित व्यक्ति केवल अपने स्वार्थों के लिए करते हैं.क्योंकि यदि इंसान जागरूक होता तो आज हर जगह करप्शन नहीं फैलता.अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपनी मनमानी नहीं कर सकते. देश समाज,गावं शहर और गली मोहल्ले में मुसीबत आने पर किसी एक के सामने आते ही दुसरे लोग भी उसका साथ देने सामने आ जातेपर आज ऐसा नहीं है. जिस गति से लोगो ने शिक्षा के क्षेत्र में तरक्की की है उसी गति से समाज का पतन भी शुरू हुआ है.आज शिक्षित होने का मतलब लोग आधुनिकता से लगाते है. पहनावे, ओढ़ावे से शिक्षित या अशिक्षित होने का आंकलन करते हैं. इसी अंधी चाल में वो जानवरों की तरह जीने को मजबूरहै. वे ये नहीं देखते कि हम अपने अधिकारों का सही लाभ ले पा रहें है कि नहीं. यदि कभी कोई ऐसी तकलीफ आ जाए जिससे एक बड़ा वर्ग प्रभावित हो रहा हो. उस तकलीफ से आस-पास के लोगो का जीना मुहाल हो रहा है और वो खुद भी उससे पीड़ित हो तो ऐसी दशा में भी वे सामने नहीं आते.बल्कि वे किसी ऐसे शख्स का इन्तेजार करते है जो उनकी मदद कर सके. जबकि वो खुद उस काम को करने में सक्षम है. लोग जानते सब है किस परेशानी से कैसे निबटना है लेकिन सामने नहीं आना चाहते.क्योंकि वे ये सोचते है कि हमें इस पचड़े पड़ने की क्या जरुरत है. और इसी सोंच के कारण कोई भी सामने नहीं आता और सब बंटे हुए रहते हैं. एकता की इसी कमी का फायदा अधिकारी और जनप्रतिनिधि उठाते है. उन्हें पता रहता है कि लोगों में एकता तो है नहीं वे क्या करेंगे. और इसी का फायदा उठा कर वे लोगों को अभावों में जीने को मजबूर कर देते है. अभावों और दरिद्रता में जीने के लिए वो खुद (आम आदमी) जिम्मेदार है. क्योंकि यदि जिस समय परेशानी या तकलीफ हुई थी उसी समय लोगो द्वारा प्रबलता से उसका विरोध किया गया होता तो आज ये नौबत नहीं आती.

अनपढ़ ज्यादा समझदार

मैंने महसूस किया कि पढ़े-लिखे लोगों से अनपढ़ लोगों में जागरूकता अधिक होती है. यदि आप किसी मामले पर सामने आएंगे तो वो बिलकुल आपके साथ खड़े होंगे. जबकि पड़े लिखे लोगों में एक अनजाना झिझक रहता है. उनमे बोलने का लहजा भले ही न हो लेकिन वे अपनी बातों को खुलकर बोल तो सकते हैं. किसी मामले में वे अपना विरोध तो दर्ज करा सकते हैं. अपने हितों कि रक्षा के लिए वे पड़े-लिखे लोगों से ज्यादा तत्पर रहतें है.


पानी के लिए तरसते लोग दुबके रहे घरों में ( एक उदाहरण)


गर्मी का दिन था.२४ घंटे से नल में पानी नहीं आ रहा था. जिस एरिया में नल नहीं आ रहा था वहां एक-दो घरों को छोड़ सब सरकारी नल पर निर्भर थे.पानी नहीं आने के बाद भी इतनी बड़ी आबादी वाले एरिया में पूरी तरह सन्नाटा था.ऐसा लग रहा था सब कुछ ठीक है.लेकिन वास्तविकता कुछ और थी.सब इस अपने घरों में इस सोंच में बैठे थे कि पानी कहाँ से आएगा. सरकारी नल पर निर्भर लोगो को ये भी पता नहीं था कि नल क्यों नहीं आ रहा है. बाद में पता चला कि नल खोलने वाले ने वाल्व तोड़ डाला है और उसकी शिकायत भी कर दी थी. लेकिन दुसरे दिन तक वो नहीं बना था.पर कोई बोलने वाला ही नहीं. मोहल्ले का सन्नाटा देख मुझे लगा सबने कहीं न कहीं से पानी का इंतजाम कर लिया होगा. मैंने फिर हालत को देखते हुए अपने माध्यम से एक टैंकर मंगवाया. घर के सामने टैंकर के आकर खड़े होते ही बमुश्किल दो मिनट के भीतर वहां लोगों का जमावाडा हो गया. किसी तरह मैंने भी घर के लिए पानी का इंतजाम कर लिया. और आस-पास के लोग भी पानी लेकर चल दिए. टैंकर से पानी लेने वालों में डॉक्टर.इंजीनियर,ट्रांसपोर्टर और स्टुडेंट सभी तरह के लोग सामिल थे.लेकिन वहां इकठ्ठा हुए लोगों ने ये पता नहीं लगाया कि नल क्यों नहीं आया वो इस बात से खुस दिख रहे थे कि अभी का इंतजाम हो गया. किसी तरह सुबह का समय तो बीत गया. इस उम्मीद थी कि दोपहर का नल आ जायेगा. लेकिन वाल्व उस समय तक नहीं बना था. फिर पानी नहीं लेकिन पानी आने के बाद चहल- पहल दिखने वाले एरिया में फिर वही सन्नाटा. मैंने फिर सम्बंधित लोगों को फ़ोन लगाया. काफी मशक्कत के बाद किसी तरह वाल्व ठीक हुआ. लेकिन लोगों का इस बात का आज तक पता नहीं चला कि नल में पानी क्यों नहीं आया था ? लेकिन क्या नल नहीं आने के कारणों और उसके निबटारे का हल एक अकेले को ही करना था कि सबको इसके लिए आगे आना चाहिए था?

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