Saturday, March 7, 2009


उसे यह फ़िक्र है हरदम

तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है,

हमें यह शौक है देखें

सितम की इंतहा क्या है,
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही,
आओ मुक़ाबला करें
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ये मेरे ख्वाबों की दुनिया
नही सही लेकिन,
अब आ गया हूं तो
दो दिन कयाम करता चलूं।
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चैन इक पल नहीं

और कोई हल नहीं।

कौन मोड़े मोहार

कोई सांवल नहीं।

क्या बसर की बिसात

आज है कल नहीं।

छोड़ मेरी खता

तू तो पागल नहीं।
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दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

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